चर्चाः वेतन बढ़ाने के साथ रिश्वतखोरों को सजा जरूरी | आलोक मेहता
स्वाभाविक है कि संगठनों को अपना दबाव और प्रभाव बनाए रखना है। उन्हें 58-60-65 वर्ष तक पक्की नौकरी के साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों, विदेशी संगठनों के बराबर तनख्वाह चाहिए। अफसरों को वेतन के साथ प्रतीकात्मक न्यूनतम किराए पर मकान, सरकारी या पारिवारिक कामकाज के लिए दिन-रात दौड़ने वाली महंगी कारें, ड्राइवर, चपरासी भी चाहिए। ब्रिटिश-राज से चली आ रही व्यवस्था के तहत देश के हर जिले में कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को बड़े सरकारी बंगले की तीन एकड़ जमीन पर होने वाली फसल, फल-फूल का आनंद लेने के साथ निजी संपत्ति की तरह बेचने का अधिकार भी है। प्रादेशिक या राष्ट्रीय राजधानी पहुंचने पर यात्रा भत्तों के साथ मनमाने दौरे और मौजमस्ती की छूट है। सरकारी सेवा में रहने के कारण जीवन पर्यंत परिवार सहित मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं पाने का अधिकार है। न पकड़े जाएं तो यात्रा या चिकित्सा के नकली बिलों से भी सरकारी खजाने से लाखों रुपया वसूलने की सुविधा है। मरणोपरांत परिवार को पेंशन की व्यवस्था है। निम्न श्रेणी के बाबुओं से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच जाने पर रुतबे के साथ भ्रष्टाचार करने वाले कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को वर्षों तक कानूनी कार्रवाई के बाद अदालतों से सजा मिली है। लेकिन देश की महान जनता और उनकी चुनी हुई सरकार जरा हिसाब लगाकर बताए कि पिछले दो वर्षों के दौरान कितने भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई हुई? आलम यह है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए काम करने वाली सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक तक पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। कांग्रेसी ही नहीं भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा भलेमानुस ईमानदार कहलाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रधान सचिव के नजदीकी परिजनों की कंपनियों में विदेश से करोड़ों रुपयों की आमदनी अब जांच के घेरे में है। जांच और कानूनी प्रक्रिया वर्षों चलती रहती है। पद पर रहते हुए गड़बड़ी करने वालों पर कार्रवाई में वर्षों क्यों लग जाते हैं? राजधानी दिल्ली सहित विभिन्न इलाकों में सड़कों या दफ्तरों में गरीब जनता से दिन-रात रिश्वत लेने वालों को दंडित करने का इंतजाम क्यों नहीं हो पा रहा है?