चर्चाः कानून बनाओ, हजारों जान बचाओ | आलोक मेहता
उनकी चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि देश में 77 प्रतिशत दुर्घटनाएं ड्राइविंग करने वाले चालकों की असावधानियों से हो रही हैं। सरकार द्वारा 30 प्रतिशत फर्जी लाइसेंस की स्थिति पर नियंत्रण के लिए कंप्यूटराइज्ड व्यवस्था की जा रही है। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार द्वारा दो वर्षों से तैयार किए जा रहे मोटर वाहन और ड्राइविंग संबंधी दशकों पुराने नियम-कानूनों में बदलाव के प्रस्तावों को निर्णायक मोड़ पर नहीं ले जा सके हैं। सिंगापुर जैसे कम आबादी वाले छोटे से देश में भी ड्राइविंग नियम तोड़ने वाले को दस वर्ष के कठोर कारावास तक का प्रावधान है। स्वीडन जैसे अत्याधुनिक देश में पिछले वर्ष केवल एक सड़क दुर्घटना हुई। यूरोप, अमेरिका और चीन में भी मोटर वाहन और ड्राइविंग के नियम-कानून बेहद सख्त हैं। दुर्घटनाएं वहां भी होती हैं, लेकिन संख्या बहुत कम होती है और चालकों की गड़बड़ी से अधिक अन्य कारण होते हैं। जर्मनी जैसे देश में कई प्रमुख मार्गों पर कोई स्पीड लिमिट नहीं होती, लेकिन ड्राइवर भीषण सर्दी, वर्षा, बर्फबारी के बावजूद अपनी लेन और नियम का पालन करते हैं अथवा जुर्माना और सजा भुगतते हैं। भारत में मारो और भागो के बाद पकड़े जाने पर कुछ हजार जुर्माना और वर्षों तक मुकदमेबाजी के बाद छोटी-मोटी सजा के नियम कानून हैं। इसलिए गलती मानने और जनता में जागरुकता लाने से ज्यादा जरूरी है- कठोरतम नियम कानूनों की।