भ्रष्टाचार के कलंक का टीका मोटा हुआ
रिपोर्ट केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की है। इसलिए प्रतिपक्ष का आरोप नहीं है, न ही मीडिया का पूर्वाग्रह। मतलब भाजपा सरकार के सिर पर भी भ्रष्टाचार के कलंक का टीका छोटा होने के बजाय मोटा होता जा रहा है। भाजपा नरेंद्र मोदी को आगे रखकर भ्रष्टाचार से छुटकारे के मुद्दे पर चुनाव में व्यापक समर्थन जुटाकर सत्ता में आई थी। लेकिन सरकारी और स्वायत्त कहे जाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों (पब्लिक सेक्टर कंपनियों) में भ्रष्टाचार कम नहीं हो पा रहा है। सत्ता में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार न होना निश्चित रूप से सराहनीय बात है। लेकिन मनमोहन सिंह पर भी दस वर्षों में भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा था। लेकिन उनकी आंख-नाक के नीचे कुछ मंत्री और अधिकारी घोटाले करते रहे। इसी कारण भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ। अब केंद्रीय मंत्रियों और सचिवों पर सीधे बड़े आरोप सामने नहीं आए हैं। लेकिन विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में गड़बड़ियां-अनियमितताओं की शिकायतें हो रही हैं। दाल मूल्य वृद्धि के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान पर तो करोड़ों रुपयों के घोटाले का आरोप लगा है। फिर केंद्र सरकार के अलावा भाजपा शासित विभिन्न प्रदेशों में तो मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं। यह स्थिति भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। महाराष्ट्र, हरियाणा में मुख्यमंत्री के पास अनुभव की कमी हो सकती है। लेकिन इससे प्रशासन में गड़बड़ियां बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार में कहीं गड़बड़ी की शिकायतें आ रही हैं, तो कहीं निर्णय महीनों से लटके हुए हैं। मनमोहन सरकार में भी कुछ मंत्रालयों में फाइलों के लटके रहने के बाद भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसमें कोई शक नहीं कि भ्रष्टाचार कैंसर की तरह है और आसानी से उससे मुक्ति नहीं मिल सकती है। लेकिन समय पर स्वस्थ प्रशासन के लिए विभिन्न स्तरों पर अधिक सतर्कता और कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा रहेगी।