धरनेबाज को ‘नारों’ से परहेज
सरकार ने धारा 144 के तहत सजा की व्यवस्था वाला आदेश जारी कराया है। यह आदेश सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट की ओर से प्रसारित हुआ, जबकि दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह एस.डी.एम. के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। आज ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी फैसला दिया है कि केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री और सरकार के अधिकार सीमित हैं। दिल्ली के सर्वोच्च अधिकार उप राज्यपाल के पास हैं। मजेदार बात यह है कि केजरीवाल स्वयं दस दिनों के लिए हिमाचल प्रदेश में अवकाश पर पहुंचे हुए हैं। आम आदमी पार्टी ने धरने-प्रदर्शन पर प्रतिबंध का आधार यह बताया है कि अगस्त में स्वतंत्रता दिवस, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी जैसे त्योहार हैं और लोगों को कठिनाई हो सकती है। सवाल यह है कि अरविंद केजरीवाल गणतंत्र दिवस पर राजपथ के सामने धरना दे चुके हैं। प्रधानमंत्री निवास के बाहर हिंसक प्रदर्शन कर चुके हैं। फिर क्या लोग उत्सव के दौरान ही बड़ी संख्या में मुख्यमंत्री के दरवाजे पर उन्हें बादशाह या वाइसराय के रूप में मानकर ‘टोकरी’ भेंट करने आते हैं? सामान्य दिनों में क्या लोग उनसे नहीं मिलने आते हैं? फिर इससे बड़े धार्मिक उत्सव तो सितंबर-अक्टूबर में गणेशोत्सव, दुर्गा पूजा-नवरात्रि, विजयादशमी, दीवाली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज होने वाले हैं। केजरीवाल क्या उस समय घर के दरवाजे बंद रखकर धरने-प्रदर्शन पर भी रोक लगवाएंगे? भारत में तो हर महीने किसी धर्म विशेष के त्योहार अथवा महत्वपूर्ण तिथियां आती हैं। केजरीवाल साहब की असली समस्या अपने को अभी से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नवाब, किंग की तरह मानने की है। केवल सादी वेशभूषा और हाथ जोड़ने से वह आम आदमी नहीं माने जा सकते हैं। उनकी मानसिकता असहमति और विरोध को नहीं स्वीकारने की है। पंजाब-उ.प्र. चुनाव से पहले वह सफलतम मुख्यमंत्री और लोकप्रिय नेता के रूप में दिखना चाहते हैं।