एडमिरल रामदास का मोदी को खुला खत, 'मेरा सिर शर्म से झुक गया'

एडमिरल रामदास ने पत्र में लिखा है, जब मैं देखता हूं कि मौजूदा शासन में अल्पसंख्यकों और दलितों को निशाना बनाया जा रहा है तो 80 की उम्र पार कर चुके मुझ बूढ़े को अपना सिर शर्म से झुकाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वह आजादी के तुरंत बाद 14 साल की उम्र में भारतीय सेना में शामिल हुए थे और 1993 में भारतीय नौसेना के प्रमुख पद से रिटायर होने तक उन्होंने भारत में बदलाव के कई दौर देखे हैं। उन्हें 45 साल तक सशस्त्र सेनाओं की सेवा करने का सौभाग्य मिला जहां जाति या धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं है।
केंद्र की मोदी सरकार पर सवाल उठाते हुए एडमिरल रामदास ने कहा कि मई 2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही देश भर में अलपसंख्यकों पर हमले क्यों बढ़ गए हैं? आज एक मुस्लिम को अपनी वफादारी साबित करनी पड़ती है और ऐसी स्थिति पैदा की जा रही है जहां उनके प्रार्थना स्थल, खान-पान की आदतों और बुनियादी आजादी को निशाना बनाया जा रहा है। दलित उत्पीड़न के मामले भी बेरोकटोक जारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाते हुए रामदास ने लिखा है कि उन लोगों ने भारत के राष्ट्रपति से देश के संविधान की रक्षा की शपथ ली थी। ऐसा करने में उनकी नाकामी एक गंभीर मुद्दा है और देश की एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी उचित नहीं है।
एडमिरल रामदास ने प्रधानमंत्री के नाम अपने खुले पत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इससे जुड़े समूहों पर हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए बहुसंख्यकवादी एक सूत्री एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है। उन्होंने लिखा है कि इसी वजह से महज अफवाह के आधार पर लोगों को भीड़ द्वारा मार डालने जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। रामदास के मुताबिक, जो लोग देश को चला रहे हैं उनकी तरफ से ऐसी घटनाओं की स्पष्ट तौर पर निंदा न किया जाना सबसे चौंकाने वाली बात है। ऐसा लगता है कि सरकार में शामिल लोग इन गंभीर हमलों को “दुखद” और “दुर्भाग्यपूर्ण” बताकर कमतर दिखाने की कोशिश में जुटे हैं।