आजादी के रास्ते में फूल-पत्थर
आजादी की लोकतांत्रिक लहर में देश ने हर रंग, विचार, सुख-दुख, संघर्ष सफलता, बाढ़-सूखा, हरित क्रांति से डिजिटल क्रांति, त्याग-तपस्या, भ्रष्टाचार, अत्याचार, न्याय, धर्म-अधर्म, स्वागत और विदाई के दौर देखे हैं। पंडित नेहरू से नरेंद्र मोदी तक हर प्रधानमंत्री के साथ हर पीढ़ी ने प्रगति, शांति, समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य के सपने बुने हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी को लाल किले या इंडिया गेट पर शान से तिरंगे को लहराने के साथ सलामी के दौरान हर भारतीय का दिल-दिमाग गौरवान्वित महसूस करता है। यह तिरंगा हर गांव, गली, मोहल्ले और घरों तक दिखता है। समारोह-उत्सव के दौरान तिरंगे के साथ फूल भी बरसते हैं। गांधी-नेहरू-पटेल जैसे महापुरुषों की प्रतिमाओं-चित्रों पर पुष्प मालाएं चढ़ाई जाती हैं। परंपरा के अनुरूप अतिथि नेताओं को भी फूल मालाएं या गुलदस्ते भेंट किए जाते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि जीवन की हर राह पर फूल ही फूल मिले, उसकी खुशबू की तरह सदा खुशहाली रहे। लेकिन ऐसा संभव नहीं होता। इसी संदर्भ में पिछले दिनों एक युवा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुझाव दिया कि यदि वे स्वयं और उनके साथ मंत्री-नेता सार्वजनिक कार्यक्रमों में फूल मालाओं और गुलदस्तों को लेने-देने की व्यवस्था बंद करवा दें तो करोड़ों रुपयों की बचत होगी। इस धनराशि का इस्तेमाल स्वच्छ भारत जैसे किसी भी जनहित से जुड़े अभियान के लिए हो सकता है। सचमुच सुझाव अच्छा है। आखिरकार, आजादी की लहलहाती मीठी हवा के बावजूद अब भी देश में करोड़ों लोग गरीबी, अशिक्षा, अभाव में जीवन-यापन कर रहे हैं। पंद्रह अगस्त को तिरंगा फहराने, महापुरुषों की प्रतिमाओं पर फूल चढ़ाने के साथ हर भारतीय को न्यूनतम सुविधाएं-सुख उपलब्ध कराने के संकल्प की जरूरत होगी। राजनीतिक आजादी आर्थिक आजादी से जुड़ी हुई है। कश्मीर से केरल, मुंबई से मणिपुर तक युवा शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की सुविधाएं/संसाधन उपलब्ध होने पर पत्थर उठाने की कोशिश ही नहीं करेंगे। स्वतंत्रता सेनानियों का असली सम्मान उनके आदर्शों और आजाद भारत की खुशहाली के सपनों को साकार करने से होगा।