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26 May 2016

3 करोड़ से ज्‍यादा केस लंबित, 40 हजार जज चाहिए पर मोदी सरकार ने किया इनकार

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पिछले आठ मई को 1987 लॉ कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ठाकुर ने कहा था कि न्यायपालिका को लंबित पड़े करोड़ों केसों को निपटाने के लिए 40,000 जजों की जरूरत है। एक अंग्रेजी अखबार की खबर के अनुसार इस कमी की खबर पर कानून मंत्री वी सदानंद गौड़ा ने कहा कि कमीशन की रिपोर्ट सिर्फ विशेषज्ञों और आम लोगों की राय पर आधारित थी। अभी तक इस पर कोई साइंटिफिक डाटा नहीं उपलब्ध है, इसलिए हम इस पर ज्यादा नहीं बोल सकते'।

उन्होंने कहा कि अभी भारत में दस लाख की जनसंख्या पर 10.5 जज हैं, ये संख्या दुनिया में सबसे कम में से एक है। 1987 में लॉ कमीशन ने अनुशंसा की थी कि 10 लाख जनसंख्‍या पर कम से कम 40 जज होने चाहिए। 2014 में कमीशन ने अपनी 245 वीं रिपोर्ट में कहा कि दस लाख की आबादी  पर 50 जज होने चाहिए। अभी हमारे पास 20502 ट्रायल कोर्ट जजों, 1065 हाईकोर्ट जज और 31 सुप्रीम कोर्ट के जजों समेत कुल 21,598 जज हैं। एनडीए सरकार के दो साल पूरे होने के अवसर पर अपने मंत्रालय के कामकाज की रिपोर्ट पेश करते हुए गौड़ा ने सफाई दी कि केंद्र जजों की नियुक्ति में जानबूझकर देर नहीं कर रहा है।

उन्होंने कहा कि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में चार जजों की नियुक्ति के लिए नामों पर 6 दिनों में फैसला ले लिया था। उन्होंने कहा कि केंद्र हाईकोर्टों में 170 जजों की नियुक्ति के लिए नामों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है और ये नाम जल्द ही साफ हो जाएंगे। गौड़ा ने बताया कि 1 जून 2014 को हाईकोर्ट में जजों की संख्या 906 थी जो अब बढ़कर 1065 हो गई है। इसके अलावा सबऑर्डिनेट कोर्टों में जजों की संख्या 2012 में 17,715 थी जो कि अब 20,502 पहुंच गई है। गौड़ा ने यह भी कहा कि केंद्र एक राष्ट्रीय मुकदमेबाजी पॉलिसी लाने पर भी विचार कर रहा है।

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OUTLOOK 26 May, 2016
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