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03 May 2016

रक्षा सौदों में दलाली पर हो रही है सरकार की कार्रवाई

गूगल

इसी के तहत पिछले सप्ताह आयकर निदेशालय ने रक्षा सौदों में अहम भूमिका निभाने वाले एक दलाल के कई ठिकानों की छानबीन की। हालांकि इस जांच पड़ताल के बारे में निदेशालय की ओर से कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है। मिली जानकारी के अनुसार आयकर विभाग के अधिकारियों ने पिछले बुधवार को संजय भंडारी नाम के एक रक्षा दलाल के 18 ठिकानों पर गहन जांच पड़ताल की है। भंडारी हाल के वर्षों में अपने कारोबार में असामान्य वृद्धि की वजह से सरकार की नजर में थे। बताया जा रहा है कि भंडारी ने 2008 में 1 लाख रुपये के निवेश से अपनी मुख्य कंपनी ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशन्स (ओआईएस) की स्थापना की थी जो आज रक्षा परामर्श और संपर्क सेवा उपलब्ध कराने वाली सात कंपनियों की कई करोड़ रुपये की नियंत्रक कंपनी बन गई है। इन कंपनियों में से एक ओआईएस-एडवांस्ड ने हाल ही में भारत द्वारा डसॉल्ट एविएशन से खरीदे जा रहे 38 लड़ाकू विमानों के उपकरणों की आपूर्ति करने के लिए फ्रांस की रक्षा निर्माता रफॉट से एक संयुक्त उद्यम समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

 

आयकर महानिदेशालय द्वारा बुधवार को की गई छानबीन के बारे में तत्काल विस्तृत जानकारी नहीं मिल सकी है लेकिन पता चला है कि 2009 से 2014 के बीच भंडारी ने 35 शेल कंपनियों से 69.38 करोड़ रुपये प्राप्त किए। मई 2014 में जब एनडीए की सरकार सत्ता में आई तब उसने आईबी से भंडारी के लेन-देन के संबंध में एक रिपोर्ट मांगी। ब्यूरो ने जुलाई 2014 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें आरोप है कि पाइलेटस नामक स्विस फर्म ने 4,000 करोड़ के प्रशिक्षण विमानों के विवादित सौदे के लिए ओआईएस की सेवा ली। 2015 में रक्षा मंत्रालय के वित्त विभाग ने इस सौदे को इसके प्राकृतिक बनावट में खामी की वजह से रद्द कर दिया था। दक्षिण कोरिया की सरकार ने भी 2012 में इस सौदे में निम्नतम बोलीकर्ता के तौर पर पाइलेटस के चयन पर रक्षा मंत्रालय के समक्ष अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया था। कोरिया एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (काई) इसी अनुबंध के लिए दावेदार थी।

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रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में दी गई जानकारी के अनुसार 2012 में भंडारी ने एक गोपनीय स्त्रोत से 10 लाख स्विस फ्रैंक प्राप्त किए। यह लेन-देन भारतीय वायु सेना द्वारा 2012 में 4000 करोड़ रु. के 75 बेसिक प्रशिक्षण विमानों का ऑर्डर दिए जाने से दो साल पहले हुआ। भंडारी के समूह की कंपनियों ने जिन कंपनियों से भुगतान प्राप्त किया उनमें से ज्यादातर कंपनियों के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) में दर्ज पते फर्जी पाए गए। लेन-देन की शुरुआत अगस्त 2009 में तब हुई जब भंडारी की कंपनियों में से एक एसबी हॉस्पिटालिटी एंड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को दो संस्थाओं, मिस्टिक फैशन प्राइवेट लिमिटेड और जैस्मीन सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन जो क्रमश: दिल्ली के लक्ष्मी नगर और शकरपुर में पंजीकृत हैं, से 13 किस्तों में 1.6 करोड़ रुपये मिले। आरओसी में दर्ज जानकारी और वहां की छानबीन में दोनों ही पते फर्जी पाए गए। दो महीने बाद, 11 नवंबर को इसी फर्म को तीन कंपनियों से 1.2 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। इनमें से दो रोहिणी में पंजीकृत हैं और तीसरी अमरजीत मोटर्स प्राइवेट लिमिटेड आरओसी के साथ सूचीबद्ध नहीं है। पांच सालों में एसबी हॉस्पिटलिटीज को 35 कंपनियों से 31.67 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। इसके लिए एक ही दिन में कई लेन-देन हुए। एचटी द्वारा बैंक खातों की जांच के अनुसार पहले फर्जी कंपनियों के खाते में नकद राशि जमा की गईं और बाद में उन्हें भंडारी की कंपनियों के खातों में ट्रांसफर किया गया। समूह की सातों कंपनियों के निवेशक भी एक ही थे। 

 

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TAGS: अगस्ता वेस्टलैंड, हेलीकॉप्टर डील, दलाली, बवाल, रक्षा सौदा, भारत सरकार, लेन-देन, अनियमितता, दलाल, आयकर महानिदेशालय, जांच पड़ताल, संजय भंडारी, ऑफसेट इंडिया सॉल्यूशन्स, निवेश, रक्षा परामर्श, संपर्क सेवा, ओआईएस-एडवांस्ड, फ्रांस, रक्षा निर्माता, रफॉट, संयुक्त उद्यम
OUTLOOK 03 May, 2016
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