क्या बदल गये हैं मोदी
उनके इस भाषण पर राजनीतिक हलकों में चर्चा जारी है। भाषण की अलग-अलग तरह से व्याख्या की जा रही है। यह भी पूछा जा रहा है कि उऩकी ही पार्टी के योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे लोग प्रधानमंत्री के इस भाषण का कितना पालन करेंगे?
मोदी ने अब तक का अपना राजनीतिक जीवन राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ भारतीय जनता पार्टी से साथ बिताया है। यह दोनों संगठन हिंदू कट्टरपंथ के लिए जाने जाते हैं। आज भी उनका व्यक्तित्व इन्हीं संगठनों की बैसाखी पर खड़ा है।
मोदी की छवि एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की रही है। गुजरात में हुए 2002 के दंगों के दाग उनसे आज भी नहीं धुले हैं। देश ही नहीं दुनियाभर में उन दंगों की कड़ी आलोचना हुई थी। तब मोदी गुजरात के मुंख्यमत्री थे और उन पर दंगाइयों को संरक्षण देने का आरोप लगा था।
अब सवाल यह उठता है कि देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी का हृदय परिवर्तन हो गया या उन्हें देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान और प्रधानमंत्री पद की ज़िम्मेदारी का बोध हो गया है या फिर यह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बयान का असर है? क्यों कि हाल ही में उऩ्होंने बयान दिया था कि जिस तरह भारत में अल्पसंख्यक समूहों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें देखकर महात्मा गांधी को भी धक्का लगता। ओबामा की बात ने मोदी की अंतरआत्मा को झिंझोड़ा है या फिर यह अमेरिका को नाराज़ न करने की राजनयिक मज़बूरी है?
अमेरिका से यह भी ख़बर आ रही है कि वहां के कुछ मंदिरों में हिंदू धर्म के ख़िलाफ़ नारे लिखे गए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसीलिए मोदी ने अपने इस भाषण में दिल्ली के अंदर पिछले दो महीनों में चर्चों पर हुए हमलों की भी आलोचना की। बहुत दिनों तक मोदी ने इस मामले में अपनी ज़बान नहीं खोली। इसके ख़िलाफ़ अल्पसंख्यक समुदाय के संगठनों से जुड़े लोगों ने दिल्ली में प्रदर्शन भी किया था। पुलिस ने उन पर लाठीचार्च किया।तब भी मोदी कुछ नहीं बोले।
ओबामा के दिल्ली आने से पहले ईसाई समुदाय के लोगों ने एक ख़त लिखकर उनसे ईसाई समुदाय पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए बात करने की अपील की थी।
मोदी इस भाषण में क्यों और कैसे अपनी पुरानी कट्टर लाइन से पलटे इसका सही उत्तर आना बाक़ी है। लेकिन यह सवाल दीगर हैं कि मोदी ऐसी बातें करके सिर्फ औपचारिकता निभा रहे हैं या पक्ष और विपक्ष अब भारतीय जनता पार्टी के भीतर से ही दिखाने की कोशिश की जा रही है?