ऐतिहासिक विजय से बढ़ती अपेक्षा
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में समस्याओं के पहाड़ को चुनाव अभियान में स्वयं मोदीजी ने बार-बार रेखांकित किया। उत्तराखंड में प्राकृतिक विपदा के साथ राजनीतिक तूफान बहुत आ चुके और सत्ता मिलने के बावजूद दल-बदलुओं के कारण आंतरिक तनाव रहने वाला है, लेकिन भाजपा सरकार को ठोस परिणाम देकर नये रास्ते बनाने हैं। छोटे-होते हुए गोवा और मणिपुर की समस्याएं कम नहीं हैं। खासकर मणिपुर सहित पूर्वोत्तर राज्यों में लाखों युवा बेरोजगार हैं। उनके रोजगार की व्यवस्था न होना खतरनाक साबित हो सकता है। पंजाब में भाजपा की करारी पराजय के बावजूद युवाओं और किसानों की मांगों, समस्याओं और अपेक्षाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेसी सरकार को यथासंभव सहायता-सहयोग देना है। उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था, किसानों को राहत, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, भ्रष्टाचार पर अंकुश, गंगा-यमुना को सही मायने में स्वच्छ बनाते हुए सांप्रदायिक सद्भाव बनाने की बड़ी चुनौती नई सरकार के समक्ष होगी। प्रतिपक्ष को कमजोर देखकर प्रादेशिक नेतृत्व यदि अहंकार के साथ निरंकुश हो जाए, तो समस्याएं बढ़ सकती हैं। प्रशासनिक व्यवस्था में फेरबदल हो सकता है, लेकन आमूल परिवर्तन संभव नहीं है। उसी मशीनरी से काम लेना है। प्रशासनिक व्यवस्था का एक वर्ग आलसी, निकम्मा और भ्रष्ट होता है। वहीं एक वर्ग ईमानदार और समर्पित भाव से कर्तव्य निभाता है। राजधानी से जिलों और गांवों तक विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन इसी मिश्रित व्यवस्था से होगा। जम्मू-कश्मीर हो या उत्तर प्रदेश या मणिपुर, युवाओं की शिक्षा और रोजगार के लिए अधिकाधिक पूंजी और संसाधनों की आवश्यकता है। असलियत है कि म.प्र. जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी पांच-पांच हजार प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों का अभाव है। राजनाथ सिंह के कार्यकाल में छात्रों की नकल रोकने की कड़ी कार्रवाई से तत्कालीन सरकार की साख भी बढ़ी थी। अखिलेश सरकार ने लैपटॉप बांटे और युवा आकर्षित हुए। लेकिन शैक्षणिक ढांचा चरमराता रहा। अब ढाई करोड़ युवाओं को संभालने का दायित्व नई सरकार पर होगा।