नागरिकता कानूनः क्या खुद को मोदी-शाह से आगे दिखाना चाहते हैं योगी आदित्यनाथ?
नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों पर उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह की कार्रवाई की है, वैसा देश के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर भी बिना किसी उकसावे के हिंसात्मक कार्रवाई की गई। पुलिस की कार्रवाई को राजनीतिक वर्ग और प्रशासन का पूरा समर्थन मिला। जब प्रदर्शन शुरू हुए तभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “बदला” लेने की बात कही थी, और वह निर्ममता के साथ ऐसा कर भी रहे हैं।
क्या संवैधानिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति व्यक्तिगत या पार्टी हित में सत्ता का इस्तेमाल उन लोगों के खिलाफ बदला लेने के लिए कर सकता है जो संविधान में मिले अधिकार के तहत विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं? ऐसे राज्य में जहां अक्सर जंगल राज दिखता हो, इस तरह के सवाल अकादमिक लग सकते हैं। लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह कानून को ताक पर रखा गया, वह अभूतपूर्व है। व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर कानून (और संविधान) का निर्लज्जता से उल्लंघन किया जा रहा है।
प्रदर्शन में देश भर में 24 की मौत, अकेले यूपी में 19 की जान गई
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन में देश भर में 24 लोग मारे गए हैं। इनमें योगी के उत्तर प्रदेश में मरने वालों की संख्या 19 है। इनमें कई लोगों की मौत पुलिस फायरिंग में भी हुई जिससे प्रशासन ने इनकार किया है। इसके अलावा 11 दिसंबर के बाद 327 दर्ज मामलों में यूपी पुलिस ने 1,100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। कम से कम 5,500 लोग ऐहतियातन हिरासत में रखे गए हैं। कश्मीर में अगस्त में अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब नवंबर के मध्य तक वहां 5,161 लोग ऐहतियात के तौर पर हिरासत में लिए गए थे।
बुजुर्ग, बीमार और महिलाओं तक को नहीं बख्शा
उत्तर प्रदेश के इस “गुंडा राज” में उम्र, स्टेटस और दूसरी बातों का कोई मतलब नहीं है, सिवाय इसके कि अगर आप मुसलमान हैं तो आपके साथ और बुरा हो सकता है। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में नाबालिगों, जिनमें स्कूली छात्र भी थे, को गोली मारी गई, वे गिरफ्तार किए गए और हिरासत में लिए गए। कई जगहों पर महिलाएं, बुजुर्ग और व्यापारी पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए। जो गिरफ्तारी या हिरासत में लिए जाने से बच गए, उन्हें उनके घर या दुकान में पीटा-धमकाया जा रहा है। उनकी दुकाने तहस-नहस कर दी गईं। बुजुर्गों और बीमारों तक को नहीं बख्शा गया।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का कहना है कि जब वह रिटायर्ड आइपीएस एस.आर. दारापुरी से मिलने जा रही थीं, तो उनके साथ बदसलूकी की गई। 75 वर्षीय दारापुरी जन सेवा के लिए जाने जाते हैं। दारापुरी के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता सादाफ जफर, रंगमंच कलाकार दीपक कबीर और 76 साल के वकील मोहम्मद शोएब उन लोगों में हैं जिन्हें गिरफ्तार किया गया है। योगी आदित्यनाथ ने बदला लेने की जो बात कही थी, पुलिस उसे पूरा कर रही है। उदाहरण के लिए, प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान की भरपाई लोगों से की जा रही है।
पार्टी में अपनी अथॉरिटी दिखाना चाहते हैं आदित्यनाथ
कुल मिलाकर कहें तो अपनी अथॉरिटी दिखाने के लिए आदित्यनाथ पूरे प्रदेश को डरा रहे हैं। क्यों? क्या उन्हें डर है? या प्रधानमंत्री के इस बयान ने, कि प्रदर्शन और हिंसा करने वाले कपड़ों से पहचाने जा सकते हैं, योगी पर दबाव बढ़ा दिया है और वे यह साबित कर रहे हैं कि विरोध को दबा सकते हैं? आदित्यनाथ नहीं भूल सकते कि राज्य की बागडोर सौंपे जाते वक्त वे मोदी की पहली पसंद नहीं थे। हिंदुत्ववादी ताकतों के लिए यूपी महत्वपूर्ण राज्य है। यहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा “आसमान जितना ऊंचा राम मंदिर” बनाना चाहती है। खुद को मजबूत और हिंदुत्ववादी ताकतों का नेता दिखाकर आदित्यनाथ संभवतः मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से आगे दिखना चाहते हैं, क्योंकि ये दोनों भाजपा में उन्हें आगे बढ़ने नहीं देंगे।
योगी का संदेश मोदी और शाह के लिए भी
आदित्यनाथ की पुलिस का संप्रदायवादी रवैया उस समय भी दिखा जब एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों से पाकिस्तान जाने के लिए कह दिया। आदित्यनाथ खुद को संभवतः अपने विरोधी धड़े के ऊपर भी दिखाना चाहते हैं। शायद वे अयोध्या में राम मंदिर बनाने का श्रेय भी लेना चाहते हैं। लोगों को बांटने वाले ऐसे विवादों में ही भाजपा के बड़े नेता पनपे हैं। इस तरह आदित्यनाथ की बर्बरता प्रदर्शनकारियों, अल्पसंख्यकों और भाजपा विधायकों के लिए ही नहीं, बल्कि मोदी और शाह के लिए भी संदेश हैं।
(लेखक वियॉन टीवी के संपादकीय सलाहकार हैं, लेख में विचार उनके निजी हैं)