जेसिका लाल हत्या के दोषी मनु शर्मा को बहन सबरीना ने माफ किया, सजा में रियायत पर एतराज नहीं
अपनी बहन जेसिका लाल के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए सबरीना ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। करीब दो दशक पुराने इस मामले का मुख्य दोषी सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा है, जो तिहाड़ में उम्रकैद की सजा काट रहा है। अब मनु को माफ करते हुए सबरीना ने कहा है कि यदि उसे सजा में रियायत मिलती है तो उन्हें कोई परेशानी नहीं है।
मनु को हाल में तिहाड़ के ओपेन जेल में शिफ्ट किया गया है। जेल के जनकल्याण अधिकारी को लिखे पत्र में सबरीना ने कहा है कि उन्हें इस फैसले से कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने अपनी बहन की हत्या करने वाले को दिल से माफ कर दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, पत्र में सबरीना ने कहा है, “मुझे बताया गया है कि जेल के अंदर वह लोगों की मदद कर रहा है। काफी चैरिटी भी कर रहा है। मुझे लगता है कि यह सुधरने के संकेत हैं। मैं यह बताना चाहूंगी कि उसके रिहाई से मुझे कोई परेशानी नहीं है।”
सबरीना ने जेल कल्याण अधिकारी की तरफ से पीड़ित कल्याण फंड से मिलनेवाली राशि भी लेने से मना कर दिया है। उन्होंने कहा यह पैसे किसी जरूरतमंद को दान कर दिए जाएं। सबरीना ने पत्र लिखने की पुष्टि करते हुए अखबार को बताया कि वह अब गुस्सा और नफरत अपने दिल में नहीं रखना चाहतीं। वह अब और अधिक गुस्से में नहीं जीना चाहतीं। उन्हें लगता है कि मनु ने अपनी सजा काट ली है और वे इन सब परिस्थितियों में और अधिक नहीं उलझना चाहतीं।
गौरतलब है कि मशहूर मॉडल जेसिका लाल की 29 अप्रैल 1999 की रात दिल्ली के टैमरिंड कोर्ट रेस्टोरेंट में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शराब देने से मना करने पर मनु ने उसे गोली मारी थी। मनु हरियाणा कांग्रेस के पुराने कद्दावर नेता विनोद शर्मा का बेटा है। सात साल तक चले मुकदमे के बाद फरवरी 2006 में जेसिका लाल मर्डर केस में सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे। इसके बाद सबरीना की कोशिशों से केस दोबारा खोला गया।
जेसिका लाल मर्डर, कब क्या हुआ
29 अप्रैल 1999 : दक्षिणी दिल्ली के एक रेस्तरां में जेसिका लाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
6 मई 1999: मनु शर्मा ने आत्मसमर्पण किया।
3 अगस्त 1999 : आरोप-पत्र दाखिल।
3 मई 2001 : चश्मदीद श्यान मुंशी अपने बयान से मुकरा और अदालत में उसने मनु की शिनाख्त नहीं की।
5 मई 2001: अन्य चश्मदीद शिव दास भी अपने बयान से मुकरा।
16 मई 2001: तीसरा प्रमुख गवाह करन राजपूत भी अपने बयान से मुकरा।
21 फरवरी 2006 : निचली अदालत ने साक्ष्य के अभाव में सभी अभियुक्तों को बरी किया।
13 मार्च 2006 : दिल्ली पुलिस ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
3 अक्तूबर 2006 : उच्च न्यायालय ने इस अपील पर नियमित आधार पर सुनवाई शुरू की।
18 दिसंबर 2006 : उच्च न्यायालय ने मनु शर्मा, विकास यादव और अमरदीप सिंह गिल उर्फ टोनी को दोषी करार दिया।
20 दिसंबर 2006 : उच्च न्यायालय ने मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई और 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
2 फरवरी 2007 : मनु शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।
19 अप्रैल 2010 : शीर्ष न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा।