जीवन रक्षक बनते भक्षक
इसी तरह बड़ी संख्या में बने निजी अस्पताल की शुरुआत ‘मानव सेवा’ के लक्ष्य और ट्रस्ट इत्यादि की स्थापना के साथ जमीन और करों में रियायत लेकर हुई है। लेकिन भुवनेश्वर के एक निजी अस्पताल में प्रबंधन की लापरवाही से हुए भीषण अग्निकांड में 20 लोगों के मारे जाने और एक सौ से अधिक घायल होने की घटना संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था के लिए शर्मनाक मानी जाएगी। बिजली का शार्ट सर्किट होना मानवीय गलती नहीं होती, लेकिन अस्पताल में नियमानुसार आग बुझाने की न्यूनतम व्यवस्था तक नहीं होना अस्पताल प्रबंधन को दोषी ठहराने का पर्याप्त आधार है। यह पहला अवसर नहीं है। कोलकाता के एक निजी अस्पताल में भी भयावह अग्निकांड और मौतों के बाद शीर्ष प्रबंधकों को महीनों जेल में रहना पड़ा और अदालती कार्रवाई अब तक चल रही है। लेकिन भुवनेश्वर के निजी अस्पताल की आपराधिक गड़बड़ी में राजनेताओं की दादागिरी का मामला अधिक गंभीर है। ओडिशा के सत्तारूढ़ नेता मंत्री का रिश्तेदार भी इस निजी अस्पताल से जुड़ा हुआ है। नवीन पटनायक दो दशकों से सम्राट की तरह प्रदेश में राज कर रहे हैं, क्योंकि उनके सामने कोई बड़ा नेता उभर नहीं पाया। उनके दरबारी राज चलाते हैं। दरबारी के रिश्तेदार इस अस्पताल में मानमानी और लूट में हिस्सेदार रहे हैं। इसलिए फायर सेफ्टी के इंतजाम या मरीजों को उचित इलाज न मिलने की शिकायतों पर प्रशासन ने कभी कोई कदम नहीं उठाए। अन्य बदनाम निजी अस्पतालों की तरह इस अस्पताल में आई.सी.यू. में भर्ती मरीज के लिए लाखों रुपयों का बिल वसूलने के बावजूद उसके निकट संबंधियों को सही जानकारी न देने और संदिग्ध स्थिति में मृत्यु के बाद भी सुनवाई की शिकायतें रही हैं। लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बार भी अग्निकांड में आई.सी.यू. में भर्ती 20 व्यक्ति मारे गए हैं। यह कैसा दानवी प्रबंधन है। निचले स्तर के 4 कर्मचारियों के निलंबन और कागजी जांच के दिखावे से क्या इस मामले को दबा दिया जाएगा? स्वास्थ्य को राज्य के अधिकार क्षेत्र की बात कहकर केंद्र सरकार भी अपना पल्ला झाड़ लेती है। लेकिन विवादास्पद निजी अस्पतालों की गड़बड़ियों, मेडिकल कॉलेजों में धांधली, अयोग्य डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों के मुद्दे पर एक नई राष्ट्रीय नीति, नये कड़े नियम-कानून बनाने का वक्त आ गया है।