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02 September 2017

साहित्य से जुड़ेगी रेल, लेकिन हादसों पर कब कसेगी नकेल?

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सुरेश प्रभु अभी 'रेलवे मिनिस्टर इन वेटिंग' हैं। असल में उन्होंने एक के बाद हुए रेल हादसों के बाद प्रधानमंत्री मोदी को इस्तीफे की पेशकश कर रखी है लेकिन मोदी ने उनसे इंतजार करने को कहा है। रविवार को होने जा रहे बड़े कैबिनेट फेर-बदल में सुरेश प्रभु पर भी फैसला होगा। लेकिन फिलहाल सुरेश प्रभु ने सुझाव दिया है कि ट्रेनों के नाम मशहूर साहित्यकारों की रचनाओं के नाम पर रखे जाएं।  इसमें न सिर्फ लेखक को, बल्कि वह जिस इलाके का है उसे भी तरजीह दी जाएगी। रेलवे के मुताबिक, ये आइडिया सुरेश प्रभु का है।

पीटीआई के मुताबिक, रेलवे के एक सीनियर अफसर ने बताया कि पश्चिम बंगाल जाने वाली ट्रेन का नाम महाश्वेता देवी के उपन्यास के नाम पर और बिहार जाने वाली ट्रेन का नाम रामधारी सिंह दिनकर की किसी रचना के नाम पर रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि देशभर के रेलवे जोन में ट्रेनों के नाम बदलने के लिए रेलवे मिनिस्ट्री अवॉर्ड जीतने वाले साहित्यकारों के नाम जुटा रहा है।

अफसर ने कहा, "यह आइडिया मंत्री (सुरेश प्रभु) का है। उनका कहना है रेलवे देश में सेक्युलर एकजुटता का प्रतीक है। ऐेसे में ट्रेन अलग-अलग संस्कृतियों को दिखा सकती हैं। हम अलग-अलग इलाकों और अलग-अलग भाषाओं से आने वाले लेखकों के नाम पर ट्रेनों का नाम करने जा रहे हैं।"

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पहले भी लेखकों-विचारकों-रचनाओं के नाम पर रखे गए हैं ट्रेनों के नाम-

हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे मदन मोहन मालवीय के उपनाम "महामना" के नाम पर महामना एक्सप्रेस का नाम रखा गया।

भारतीय जनसंघ के विचारक दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर अंत्योदय एक्सप्रेस का नाम बदलकर 'दीनदयाल एक्सप्रेस' किया गया। रेलवे ने उनके नाम पर ही 'दीन दयालु कोच' भी बनाए हैं।

इसी तरह दादर-सावंतवाड़ी एक्सप्रेस का नाम हाल ही में बदलकर 'तुतारी एक्सप्रेस' किया गया है। यह मराठी कवि कृष्णजी केशव दामले की कविता "तुतारी" के नाम पर किया गया है। मुंशी प्रेमचंद की उपन्यास 'गोदान' के नाम पर पहले ही गोदान एक्सप्रेस चलाई जा रही है।

ऐेसे ही कैफी आजमी के होमटाउन आजमगढ़ से जाने वाली एक ट्रेन का नाम कैफियत एक्सप्रेस है।

पर हादसों का क्या?

साहित्यकारों के नाम पर ट्रेन का नाम रखने का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन इससे क्या पिछले दिनों खतौली से लेकर कैफियत एक्सप्रेस तक रेल हादसों में आई बढ़ोत्तरी में कमी आ जाएगी? क्या रेलवे के खाने की गुणवत्ता, जिस पर कैग ने सवाल उठाए थे, उसमें सुधार आ जाएगा? क्या ट्रेनों की लेट-लतीफी से यात्रियों को निजात मिलेगी? अगर मूलभूत बदलाव ना किए जा रहे हों तो सिर्फ नाम बदलने की कवायद सिर्फ मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली बात ही ज्यादा लगती है।

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TAGS: literature, trains, suresh prahu, renamed trains, ramdhari singh dinkar, mahshweta devi
OUTLOOK 02 September, 2017
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