मैले से मुक्ति के लिए जुटे मंत्री
इस बैठक का मकसद है 2013 में संसद द्वारा पारित नए कानून-हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास, के क्रियान्वयन का जायजा लेना है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आयोजित किए गए इस सम्मेलन में पांच मंत्रालय –पेयजल और स्वच्छता, शहरी विकास, पंचायती राज, ग्रामीण विकास, आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन, रषा तथा रेलवे मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस कानून को लागू करने में अपने-अपने मंत्रालयों के योगदान को रेखांकित करेंगे।
इस सम्मेलन में ग्रामीण क्षेरों में अस्वच्छ शौचालयों का सर्वेषण और उनका स्वच्छ शौचालयों में परिर्वतन, शहरी क्षेर में हाथ से मैला उठाने वालों का सर्वेक्षण और उनका स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तन करने की दिशा में उठाए गए कदमों की समीक्षा की जा रही है।
केंद्रीय बजट से पहले इस बैठक को अहम माना जा रहा है। तमाम मंत्रालयों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक इस मद में आवंटन पर अंतिम फैसला लिए जाने की उम्मीद है। रेलवे और रक्षा मंत्रालय द्वारा भी उठाए गए कदमों पर लोगों का खासा ध्यान हैं। गौरतलब है कि रेलवे द्वारा जब तक तमाम रेलवे कोचों को बायो-टायलेट से युक्त नहीं बनाया जाएगा, तब तक पटरियों पर मानव मल गिरना जारी रहेगा। और, जब तक ऐसा रहेगा तब तक देश मैला प्रथा के दंश से मुक्त नहीं हो पाएगा।
रक्षा मंत्रालय से भी केंटोनमेंट इलाकों में मैला प्रथा के उन्मूलन के बारे में जानकारी मांगी गई है। आवास तथा शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय, शहरों में मैला ढोने वालों के लिए मुहैया कराए गए आवास के बारे में जानकारी प्रदान करे।
इन तमाम अहम सवालों पर यह सम्मेलन कितना गंभीर है, इस पर निर्भर करेगा कि भारत कब तक मैले के नरक से मुक्त होगा।