एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा का आरोप- मंदिर में मेरी दिव्यांगता का मजाक बना
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाली पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा का आरोप है कि उन्हें उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन से रोका गया और उनकी दिव्यांगता का मजाक भी उड़ाया गया।
अरुणिमा ने ट्वीट कर अपना दु:ख जाहिर किया। उन्होंने लिखा है, ‘मुझे आपको यह बताते हुए बहुत दुःख है कि मुझे Everest जाने में इतना दुःख नहीं हुआ जितना मुझे महाकाल मंदिर उज्जैन में हुआ वहां मेरी दिव्यंगता का मज़ाक़ बना।‘ उन्होंने पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) और मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय को ट्वीट में टैग भी किया। इसके तुरंत बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने मामले के जांच के आदेश दिए हैं।
मुझे आपको ये बताते हुए बहुत दुःख है की मुझे Everest जाने में इतना दुःख नहीं हुआ जीतना मुझे महाकाल मंदिर उज्जैन में हुआ वहाँ मेरी दिव्यंगता का मज़ाक़ बना । @PMOIndia @CMMadhyaPradesh
— Arunima Sinha (@sinha_arunima) December 25, 2017
अरुणिमा बताती हैं कि मंदिर के अंदर जाने के लिए किसी ड्रेस कोड के बारे में मंदिर में उन्हें कुछ भी लिखा हुआ नहीं दिखा। इसके अलावा, अरुणिमा दिव्यांग हैं और उनके पैर कृत्रिम हैं, लिहाजा इन कपड़ों में ठंड के दिनों में उन्हें पैरों में आराम मिलता है। अरुणिमा ने सारी बात वहां मंदिर कर्मियों को समझाने की पूरी कोशिश भी की, लेकिन किसी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
मामले पर प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने कहा कि महाकाल मंदिर में एक दिव्यांग के पहुंचने और उसे बिना दर्शन के वापस लौटने की बात पर उज्जैन प्रशासन को मामले की जांच के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट के बाद दिव्यांगों के लिए महाकाल मंदिर में आवश्यक व्यवस्था की जाएगी। बता दें कि अरुणिमा का नाम मंदिर के रजिस्टर में मंत्री चिटनिस की अतिथि के रूप में दर्ज था।
ट्रेन की चपेट में आने की वजह से अरुणिमा ने खोया था पैर
अरुणिमा सिन्हा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर रहने वाली हैं। 2011 में लखनऊ से दिल्ली आते वक्त लुटेरों ने अरुणिमा को रेलगाड़ी से नीचे फेंक दिया था। दूसरी पटरी पर आ रही रेलगाड़ी की चपेट में आने के कारण अरुणिमा का एक पैर कट गया था। इसके बाद अरुणिमा ने अपने हक के लिए शासन और प्रशासन से संघर्ष किया।
अरुणिमा के अनुसार, अस्पताल से निकलने के बाद दिल्ली की एक संस्था से उन्हें नकली पैर मिले। जिसके बाद वे एवरेस्ट पर जीत हासिल कर चुकी बछेंद्री पाल की शिष्या बन गईं। 31 मार्च को अरुणिमा का मिशन एवरेस्ट शुरू हुआ। 52 दिनों की चढ़ाई में 21 मई को माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर वह विश्व की पहली दिव्यांग महिला पर्वतारोही बन गईं।