नीरव मोदी पीएनबी को चूना लगाने वाले कोई पहले नटवरलाल नहीं हैं
पीएनबी को चूना लगाने वाले नीरव मोदी कोई पहले नहीं हैं। इससे पहले भी कई नटवरवाल पीएनबी को चकमा देने में कामयाब रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि पीएनबी चूना लगाने वालों के लिए आकर्षक बैंक बन गया है और आइए जानते हैं, इससे पहले कौन कौन पीएनबी को धोखा दे चुका है और पीएनबी सारे नियम कायदे होने के बावजूद इन उन पर शिकंजा क्यों नहीं कस पाया है?
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने पीएनबी बैंक को 11 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाया दिया है लेकिन यह पीएनबी को कोई पहला झटका नहीं लगा है। इससे पहले करीब 80 के दशक में कारोबारी राजेंद्र सेठिया ने भी इसी तरह पीएनबी को चूना लगाया था। उस समय सेठिया की भव्य पार्टियों में निमंत्रण पाने के लिए तब के रसूखदार भी इंतजार करते थे। खिलाने-पिलाने के अलावा उनकी दरियादिली भी चर्चित थी। उनके रहन सहन और तौर तरीकों से बैंक उनसे खासे प्रभावित थे और कर्ज देने को तैयार बैठे रहते थे और बैंक ने तब उन्हें बिना सिक्योरिटी के करोड़ों का कर्जा दे दिया था। यह कर्जा सेठिया ने फर्जी कागजात पर लिया था। जब सेठिया का धंधा कमजोर पड़ा तो बैंक उनसे अपना पैसा नहीं ले पाया। बावजूद इसके बैंक ने कोई सबक नहीं लिया।
पिछले पांच साल में पीएनबी को विनसम डायमंड्स और श्री गणेश ज्वैलर्स ने भी चूना लगाया था। इन लोगों के काम करने का तरीका ठीक वैसा ही था जैसे नीरव मोदी का रहा है। विनसम डायमंड्स की वजह से बैंकों को सात हजार करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा था। नीरव मोदी केस देखकर कई लोगों का मानना है कि यह विनसम डायमंड्स के मामले से काफी हद तक मिलता जुलता है। विनसम ग्रुप के प्रमोटर जतिन मेहता और उनकी पत्नी 2016 में ही देश छोड़ कर चले गए। अब वो फेडरेशन ऑफ सेंट किट्स एंड नेविस के नागरिक बन गए हैं।
ठीक इसी तरह पीएनबी ने नीरव मोदी और मेहुल चौकसी को इनके कारोबार के लिए इनकी बिजनेस संपत्ति से कई गुना ज्यादा कर्ज दे दिए। बैंक ने फर्जी एलओयू ( लेटर ऑफ अंडरटेकिंग ) के सहारे इनकी कंपनियों को कर्ज दिया और नतीजा सबके सामने है।
बैंकों में तीन वर्षों में कर्मचारियों के तबादले का नियम है, लेकिन कहा जा रहा है कि कुछ कर्मचारियों ने लगातार सात सालों तक फर्जी एलओयू जारी किया। ऐसा तभी हो सकता है जब उन कर्मचारियों को एक ही जगह पर लगातार काम करने दिया जाए। अब सीवीसी ने तबादले के लिए एडवाइजरी जारी की है। पहले से तय दिशा निर्देशों की क्या अऩदेखी नहीं की गई? इसके अलावा इतने बड़े कर्ज को बिना बड़े स्तर के अधिकारी की सहमति के बिना जारी ही नहीं किया जा सकता और यह ऑडिटर्स की नजर सेकैसे बच गए?
हकीकत यही है कि पब्लिक सेक्टर बैंक्स अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश नहीं करते। हरेक कुछ सालों के बाद इन बैंकों को जालसाज चूना लगा जाता है और ये लकीर पीटते रह जाते हैं. आज भी आम डिफॉल्टर से बैंक सख्ती से पेश आते हैं जबकि रसूखदारों के मामलों में बड़े कर्ज लेने वालों के लिए बैंक पलक पांवड़े बिछाए रहते हैं। पीएनबी के मौजूदा घोटले में पैसा आम लोगो का था और किसी कंपनी का होता तो वह चूना लगाने वालों को नाकों चने जरूर चबवा देता।