निर्भया फिल्म - खबरची को गोली मारो
हाल ही के दिनों में मीडिया पर पाबंदी का यह दूसरा मामला सामने आया है। इससे पहले मंत्रालयों में हुई जासूसी वाले मामले में भी मीडिया पर पांबदी लगाने को बोला गया था। मीडिया पर पाबंदी अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक है। मीडिया अगर जानकारी नहीं देगा तो शायद अपने काम से न्याय नहीं कर सकेगा। आखिर क्यों लोगों को यह पता नहीं लगना चाहिए कि भारतीय पुरुष बलात्कार के बारे में कैसा सोचते हैं ? बलात्कार पीड़िता को लेकर वे कितने संदेनशील हैं ? महिलाओं के प्रति उनका नजरिया कैसा है ? निर्भया वाले मामले में दर्शक क्यों न जाने की सलाखों के पीछे निर्भया के आरोपियों को अपने किए का कितना मलाल है ?
हालांकि बलात्कार होते रहते हैं। भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में हर जगह। लेकिन निर्भया वाली बलात्कार की घटना ऐसी घटना थी जिसने देश के हर आम-खास की आंख कड़वी कर दी थी। हल्ला बोल के नारों से दिल्ली गूंज उठी थी। बलात्कार की एक ऐसी घटना जिसकी चीख विदेशों तक गई लेकिन हमारी सरकारों से इतना नहीं हुआ कि मामले को सुनवाई जल्द कर दोषियों को सजा दे सकें।
साक्षात्कार ही तो है जिसमें मुकेश कह रहा है कि उसे दुष्कर्म पर कोई पछतावा नहीं है। उसने 16 दिसंबर 2012 सामूहिक बलात्कार वाली घटना के लिए निर्भया को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि अगर वह चुपचाप बलात्कार होने देती तो हम उसे कहीं उतार देते और लड़के की केवल पिटाई करते। मुकेश ने यह भी कहा कि रात में बाहर निकलने वाली महिलाएं अगर दुराचारी पुरूषों के गिरोह का ध्यान आकर्षित करती हैं तो इसके लिए वे खुद ही जिम्मेदार हैं। बाकायदा इस मानसिकता से देश को अवगत होना ही चाहिेए। न केवल देश बल्कि दुनिया।
गौरतलब है कि फिल्म में बयान के संबंध में आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है जिसमें किसी के नाम का उल्लेख नहीं है। दिल्ली पुलिस आयुक्त बी एस बस्सी ने कहा, हमने खबरों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की है और जांच करके दोषी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मंगलवार शाम को दिल्ली पुलिस ने यहां पटियाला हाउस में मेट्रोपॉलिटन मेजिस्ट्रेट पुनीत पहवा से अनुरोध किया और दोषी के विवादित इंटरव्यू का अगले आदेश तक प्रसारण, प्रकाशन करने से मीडिया को रोकने का आदेश हासिल किया।
फिल्म निर्माता लेस्ली उडविन का कहना है कि फिल्म में उन्होंने महिलाओं के प्रति पुरूषों के नजरिये का रूख पेश करने की कोशिश की है। इसमें कुछ भी सनसनीखेज नहीं है। जेल में मुकेश के इंटरव्यू के लिेए बाकायदा उडविन ने तिहाड़ जेल की तत्कालीन महानिदेशक विमला मेहरा से अनुमति ली थी।
अफसोस कि मीडिया का ही एक हिस्सा कई बार अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने लगता है। टाइम्स नाऊ ने बहस कराई कि उडविन ने बलात्कारी को फिल्म के जरिये मंच प्रदान करके गलती की। दरअसल, इस प्रकरण का केंद्रीय मुद्दा यह है कि हमारे समाज और उसे नियंत्रित करने वाली पुरुष सत्ता की मानसिकता कितनी जहरीली है। लेकिन विडंबना यह है कि असली मुद्दे को भटकाने के लिए बुराई के बदले बुराई की खबर देने वाले को गोली मारने की बात की जाती है।