आरटीई के तहत 29 प्रतिशत सीटें ही भरी गईं
छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के लागू होने के पांच साल बीत जाने के बाद भी इस कानून के प्रावधान के तहत पूरे देश भर के स्कूलों में वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित करीब 21 लाख सीटों में से केवल 29 प्रतिशत सीटें ही भरी जा सकी हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अहमदाबाद, सेंटल स्क्वायर फाउंडेशन, एकाउंटेबिलीटी इनिशिएटिव और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की स्टेट ऑफ नेशल आरटीई सेक्शन 12 (।) (सी) में कहा गया है कि निजी स्कूलों में वंचित वर्ग के छात्रों के लिए 25 प्रतिशत सीट आरक्षित करने का प्रावधान स्पष्ट नहीं है।
शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 12 (।) (सी) में आर्थिक एवं सामाजिक रूप से वंचित वर्ग के बच्चों के लिए स्कूलों में 25 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की बात कही गई है हालांकि इससे गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों को अलग रखा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013-14 में भारत में वंचित वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षित सीटों में से केवल 29 प्रतिशत ही भरी जा सकी हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 2013-14 में देशभर में स्कूलों में वंचित वर्ग के छात्रों के लिए कानून के इस उपबंध के तहत आरक्षित सीटों की संख्या 21,40,287 थी जिसमें से केवल 29 प्रतिशत ही भरी जा सकीं।
दिल्ली में इस वर्ग में आरक्षित सीटों की संख्या 38,297 थी जिसमें से 92 प्रतिशत सीट भरी गईं जबकि मध्यप्रदेश में ।,82,630 सीटों में से 88 प्रतिशत, राजस्थान में 2,26, 583 सीटों में से 69 प्रतिशत, गुजरात में 95,865 सीटों में से 42 प्रतिशत और कर्नाटक में ।,15,100 सीटों में से 25 प्रतिशत सीट ही भरी गईं।
रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र में वंचित वर्ग के लिए आरक्षित सीटों की संख्या ।,42, 786 थी जिसमें से 19 प्रतिशत सीट भरी गईं जबकि तमिलनाडु में ।,43,972 सीटों में से 11 प्रतिशत और उत्तरप्रदेश के 5,84,949 सीटों में से 3 प्रतिशत सीट ही भरी जा सकीं।
आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर आशीष नंदी ने कहा कि इस रिपोर्ट में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के आधार पर राज्यों में इसे लागू किए जाने की पहल का विश्लेषण किया गया है और इस बारे में उपाए भी सुझाए गए हैं।
सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन के संस्थापक आशीष धवन ने कहा कि आरटीई के इस प्रावधान के तहत वंचित वर्ग के छात्रों के लिए आरक्षित सीटों को भरे जाने की दर काफी कम है और इस कानून के लागू होने के पांच वर्ष गुजरने के बाद भी राज्यों के नियम पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है जिसके कारण इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सका है।