चर्चाः सस्ते सौदे में सीट संसद की। आलोक मेहता
राज्य सभा चुनाव के लिए इस सप्ताह कुछ टी.वी. चैनलों द्वारा दी गई खोजी रिपोर्ट से प्रमाणित हो रहा है कि साधन संपन्न नेता अपने संभावित वोटर विधायक को कितनी बड़ी धनराशि दिलवाने को तैयार हैं। इसी तरह कई विधायक ‘बाजार-भाव’ देखकर कीमत बढ़ाते हुए सौदा कर रहे हैं। सारे चुनाव सुधारों के बावजूद पिछले वर्षों के दौरान राज्य सभा चुनाव में कुछ उम्मीदवार धन-बल से आने की हर संभव कोशिश करते रहे हैं। कर्नाटक में ही पिछले चुनाव में विवादास्पद धन कुबेर विजय माल्या ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के जनता दल (एस) के विधायकों के वोट लेकर विजय प्राप्त की। अब दुनिया जानती है कि विजय माल्या ने व्यापारी-उद्योगपति-विमान कंपनी मालिक के साथ सांसद का तमगा लेकर बैंकों को लूटा एवं देश से भागने में भी सफल हो गया। इस बार भी जनता दल (एस) के पांच विधायक विद्रोही के रूप में किसी से भी अपनी ‘शर्तों’ पर वोट देने को तैयार हैं। जनता दल (एस) ने भी ‘बाजार’ की राजनीति के आधार पर उम्मीदवार खड़ा किया। कुछ विधायकों ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक सौ करोड़ रुपया सरकार से मिलने का वायदा ले लिया। कहने को यह क्षेत्र की जनता की सुविधाएं बढ़ाने के लिए है, लेकिन निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदार हमेशा बताते हैं कि उन्हें ठेका मिलने की गारंटी होने पर पहले 30 प्रतिशत किनको देना पड़ता है? कुछ विधायक तो सीधे पांच-दस करोड़ रुपये की मांग कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें अपने चुनाव का खर्च निकालना है। यह हाल कर्नाटक का ही नहीं है। कमोबेश हर राज्य में कुछ सौदागर उतर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में निर्दलीय के रूप में गुजरात-महाराष्ट्र के अरबपति परिवार की नवोदित उद्यमी आ गई हैं। हरियाणा, म.प्र., राजस्थान जैसे प्रदेशों में भी धन बल से मुकाबला करने वाले एक-एक उम्मीदवार हैं। इस दृष्टि से पूर्व चुनाव आयुक्त कृष्णमूर्ति का यह सुझाव ठीक है कि ऐसे सौदे के प्रमाण मिलने पर चुनाव स्थगित किए जाएं एवं चुनाव कानूनों में व्यापक बदलाव हो, ताकि प्रदेश से बाहर के उम्मीदवार धन के बल पर उच्च सदन में नहीं पहुंचें।