अत्याचारी भारत को सबक न दें
इसलिए धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की निगरानी करने वाले अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अमेरिकी आयोग की ताजा रिपोर्ट में भारत के संबंध में की गई टिप्पणियां एवं हिदायती सलाह बेमानी लगती हैं। आयोग की गई रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारत में घृणा, अपराध, सामाजिक बहिष्कार और जबरन धर्मातरण बढ़ गया है, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों और दलितों को भेदभाव तथा उत्पीड़न का सामना करना पड रहा है। यह माना जा सकता है कि लगभग 125 करोड़ की आबादी वाले इस विशाल देश में यदा-कदा ऐसे अपराध की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें सांप्रदायिक दुराग्रह हो सकता है। लेकिन संपूर्ण अल्पसंख्यक समुदाय और दलितों के साथ भेदभाव या उत्पीड़न का आरोप भारत की छवि बिगाड़ने वाला है। यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था, हर प्रदेश में ही नहीं जिलों से पंचायतों तक राजनीतिक, सामाजिक, स्वयंसेवी संगठनों के साथ स्वतंत्र मीडिया सक्रिय है। छोटी-बड़ी घटनाओं की रिपोर्ट आने पर विरोध के अलावा स्वतंत्र न्यायपालिका से अपराधी दंडित होते हैं। अल्पसंख्यक और दलित समुदायों के चुने हुए प्रतिनिधि महत्वपूर्ण पदों पर हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, मंत्री इन समुदायों से बनते रहे हैं। 2014 के बाद कुछ सांप्रदायिक संगठनों की गतिविधियां बढने पर उग्र विरोध भी हुआ है। दूसरी तरफ अमेरिका में पिछले वर्षों के दौरान हिस्पेनिक समुदाय के लोग भेदभाव के शिकार होते रहे हैं। विदेशी मूल के अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर प्रशासनिक-राजनीतिक दुराग्रह की घटनाएं सामने आती रही हैं। छोटे हथियार-रिवाल्वर- बंदूक आदि पर अधिकांश राज्यों में लाइसेंस की अनिवार्यता नहीं होने से दिग्भ्रमित लोग धार्मिक नफरत या अन्य कारणों से स्कूलों या सर्वजनिक स्थानों पर निर्मम हत्याएं करते रहे हैं। स्वयं अमेरिकी सरकार एशिया, मध्य पूर्व या अफ्रीका देशों में भी सैन्य या इंटेलीजेन्स गतिवधियों से ज्यादती करती है और बमबारी में मासूम लोग भी मारे जाते हैं। अमेरिकी आयोगों या संस्थाओं को अपने देश पर ध्यान देना चाहिए। भारत में आज भी सामाजिक सौहार्द्र दुनिया बड़े-बड़े देशों की तुलना में बेहतर है।