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29 July 2021

जनसंख्या नीति/आबादी की राजनीति: सियासी दलों को लाभ हो न हो, गरीबों-वंचितों के लिए यह नुकसानदायक

अगर आपके दो से अधिक बच्चे हुए तो सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। सरकारी नौकरी में हैं तो प्रमोशन नहीं मिलेगी। स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा... और भी बहुत कुछ। लेकिन आप विधायक या सांसद बन सकते हैं, बच्चे चाहे जितने हों। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नियंत्रण नीति के मसौदे का मजमून कुछ ऐसा ही है। विधानसभा चुनाव से करीब आठ महीने पहले लाए गए इस ड्राफ्ट बिल ने राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। कई दूसरे राज्यों में भी ऐसी नीति की मांग उठने लगी है।

राज्य विधि आयोग के इस ड्राफ्ट बिल- उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थायीकरण एवं कल्याण) विधेयक, 2021- के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर जनसंख्या नीति 2021-2030 की घोषणा की। उन्होंने कहा कि बढ़ती आबादी विकास में बाधा है। राज्य सरकार 2026 तक प्रजनन दर 2.1 और 2030 तक 1.9 पर लाना चाहती है, जो अभी 2.7 है। नीति में लोगों को गर्भनिरोधक और सुरक्षित गर्भपात का तरीका उपलब्ध कराने, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर घटाने और 11 से 19 साल के बच्चों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और पोषण उपलब्ध कराने की बात कही गई है। जहां प्रजनन दर ज्यादा है वहां जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे।

भारत की 138 करोड़ की आबादी में उत्तर प्रदेश का योगदान 24 करोड़ का है। अगर यह अलग देश होता, तो दुनिया का पांचवां सर्वाधिक आबादी वाला देश होता। यहां आबादी का घनत्व तो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का आधा भी नहीं। सिर्फ इन आंकड़ों को देखें तो जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत महसूस होती है, लेकिन सवाल तरीके पर है।

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संयुक्त राष्ट्र की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी 2027 में चीन को पार कर जाएगी। फिर भी, यहां राष्ट्रीय स्तर पर दो बच्चे की नीति नहीं अपनाई गई। पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वह ऐसी नीति लागू नहीं करेगी। मध्य प्रदेश के सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल ने 2016 में लोकसभा में जनसंख्या नियंत्रण बिल पेश किया था, लेकिन उस पर कुछ हुआ नहीं। अब भाजपा के कई सांसद और कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी संसद के मानसून सत्र में प्राइवेट मेंबर बिल लाएंगे। इस बिल में भी उत्तर प्रदेश के ड्राफ्ट बिल की तरह जनसंख्या नियंत्रण के लिए इन्सेंटिव और दंडात्मक प्रावधानों का जिक्र है। दो से अधिक बच्चे होने पर लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा या स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान है।

देश में जनसंख्या नियंत्रण की पहल ऐसे समय हो रही है जब प्रजनन दर में पहले ही गिरावट का रुख है। प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट) का अर्थ है कि एक महिला अपने जीवन में कितने बच्चों को जन्म देती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अब तक के सर्वेक्षणों के अनुसार प्रजनन दर लगातार घट रही है। चौथे सर्वेक्षण (2015-16) में यह 2.18 थी। इसके 2030 में 1.8 तक गिर जाने का अनुमान है। प्रजनन दर 2.1 को रिप्लेसमेंट लेवल माना जाता है, यानी इस दर पर आबादी स्थिर हो जाएगी। गौर करने वाली बात है कि यह गिरावट बिना किसी दंडात्मक प्रावधान के आई है। सरकार ने 2017 की ‘यूथ इन इंडिया’ रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि शहरों में प्रजनन दर दो बच्चे प्रति महिला से कम रह गई है। भारत में 1950 के दशक में प्रजनन दर 5.9 थी, यह 1971 में भी 5.2 थी।

नई जनसंख्या नीति की लांचिंग के मौके पर एक नवविवाहित दंपती को शगुन देते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

नई जनसंख्या नीति की लांचिंग के मौके पर एक नवविवाहित दंपती को शगुन देते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर दूसरे सर्वेक्षण (1998-99) में 4.06 और तीसरे (2005-06) में 3.82 थी, जो चौथे सर्वेक्षण में 2.74 रह गई। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुतरेजा भी मानती हैं कि बिना किसी दंडात्मक प्रावधान के प्रजनन दर घट रही है। वे आउटलुक को बताती हैं, “यह सच है कि उत्तर प्रदेश सबसे अधिक प्रजनन दर वाले राज्यों में है। चौथे सर्वेक्षण में बिहार 3.4 के साथ शीर्ष पर था। लेकिन प्रजनन दर में सबसे अधिक, 1.1 की गिरावट उत्तर प्रदेश में ही दिखी। यह प्रदेश की जनसंख्या नीति 2000-16 का नतीजा है।”

‘यूथ इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार भारत की 34.8 फीसदी आबादी (2011 की जनगणना) युवाओं की है। रिपोर्ट में 15 से 34 साल के नागरिकों को युवा माना गया है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत में युवाओं (10 से 24 साल) की संख्या सबसे अधिक, 35.6 करोड़ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अनेक बार इस डेमोग्राफिक डिविडेंड की बात कह चुके हैं और इसे देश का ‘एसेट’ बताया। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के पास इस डिविडेंड का लाभ उठाने के लिए अब सिर्फ एक दशक का समय है।

उत्तर प्रदेश ने प्रजनन दर को रिप्लेसमेंट लेवल (2.1) से नीचे लाने का लक्ष्य रखा है। मुतरेजा के अनुसार, “इसके विपरीत नतीजे हो सकते हैं। जैसे श्रम बल की कमी। कुछ सालों के बाद बुजुर्ग आबादी बढ़ने की समस्या भी आएगी। आज सिक्किम वृद्ध होती आबादी और घटते श्रम बल की चुनौती का सामना कर रहा है। वहां प्रजनन दर रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे है।”

मुतरेजा का मानना है कि अनिवार्य जनसंख्या नियंत्रण नीति दीर्घकाल में नुकसानदायक होती हैं। ऐसा हम चीन के मामले में देख चुके हैं। वर्ष 2000 में वहां की आबादी में 15 से 59 साल की आयु के लोग 22.9 फीसदी थे, जो 2020 में घटकर 9.8 फीसदी रह गए। यह बड़ी चिंता का विषय है। चीन की आबादी तेजी से वृद्ध हो रही है। वहां 2010 में 13.26 फीसदी लोग 60 साल या इससे अधिक उम्र के थे, अब वे 18.70% हो गए हैं। चीन ने इस वर्ष 31 मई को तीन बच्चों की नीति की घोषणा की।

 नीति पर राजनीति

कांग्रेस के सिंघवी भले ही राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश करने वाले हों, उत्तर प्रदेश में पार्टी के ही वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ऐसी नीति की आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा,  “जनसंख्या नियंत्रण बिल लागू करने से पहले सरकार के नेता और मंत्री बताएं कि उनके कितने बच्चे हैं। यह भी बताएं कि कितने बच्चे अवैध हैं।” दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता को सरकारी नौकरी न देने की नीति पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सवाल किया, जिनके दो बच्चे हैं क्या भाजपा उन्हें सरकारी नौकरी की गारंटी देती है? दूसरी तरफ, बिल का समर्थन करते हुए राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस नेता रघु शर्मा ने यहां तक कह दिया कि अब पूरे देश में ‘हम दो, हमारा एक’ नीति लागू करने का समय आ गया है।

समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने विरोध की अलग ही वजह बताई। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री योगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बच्चे नहीं हैं। अगर देश में सबके बच्चे पैदा करने पर पाबंदी लगा दी जाए तो युद्ध की स्थिति में देश को जवान कहां से मिलेंगे।”

बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन नेताओं के सुर अलग हैं। मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार के अनुसार कानून से कुछ नहीं होगा, शिक्षा से जनसंख्या नियंत्रण संभव है। उनके बाद बिहार भाजपा अध्यक्ष और पश्चिम चंपारण से सांसद डॉ. संजय जायसवाल ने कह दिया कि बिहार को भी उत्तर प्रदेश की तरह एक बच्चे की नीति अपनानी चाहिए। भाजपा विधायक और प्रदेश के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि दो से अधिक बच्चों वाले माता-पिता के पंचायत चुनाव में भाग लेने पर रोक लगाने पर विचार हो रहा है। दो से अधिक बच्चे वालों पर 2007 में नगरीय चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी।

भाजपा के सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद ने नीति का विरोध किया है। इसके कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने उत्तर प्रदेश विधि आयोग को लिखा कि सिर्फ एक बच्चे वाले माता-पिता को इन्सेंटिव देने की नीति से बचना चाहिए, क्योंकि इससे राज्य की डेमोग्राफी बिगड़ेगी। दारुल उलूम का कहना है कि इस नीति से समाज के सभी वर्ग प्रभावित होंगे। उसने दो से अधिक बच्चे वाले परिवार को बुनियादी सुविधाओं से महरूम रखने को अनुचित करार दिया।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाइ. कुरैशी उत्तर प्रदेश चुनाव से ऐन पहले बिल लाने पर सवाल उठाते हैं। वे साफ-साफ कहते हैं, “आम लोगों को संदेह है कि यह हिंदू-मुस्लिम विवाद खड़ा करने की साजिश है, क्योंकि ध्रुवीकरण चुनाव जीतने का जांचा-परखा तरीका बन गया है।

दूसरे राज्यों में क्या

दो बच्चों की नीति कई राज्यों में लागू है, लेकिन वह निकाय चुनावों तक सीमित है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, ओडिशा और हरियाणा में दो से अधिक बच्चे वालों के स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक है। राजस्थान में ऐसे लोग सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते। मध्य प्रदेश में 2001 से और महाराष्ट्र में 2005 से ऐसा नियम लागू है।

असम में भी दो से अधिक बच्चे वालों को न सरकारी नौकरी मिलेगी न वे स्थानीय निकाय चुनाव लड़ सकेंगे। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सर्मा के अनुसार अब सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए दो बच्चे की नीति अनिवार्य बनाई जाएगी। पिछले महीने उन्होंने कहा, “कुछ बुनियादी योजनाएं सबके लिए होंगी, लेकिन कुछ योजनाओं का लाभ सिर्फ दो बच्चों वाले परिवारों को मिलेगा।” इससे पहले उन्होंने कहा था कि अगर बाहर से आए मुस्लिम परिवार नियोजन अपनाएं तो अनेक सामाजिक समस्याएं खत्म हो सकती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार असम की 3.12 करोड़ की आबादी में 34.2 फीसदी मुसलमान हैं। हालांकि पूरे प्रदेश की औसत प्रजनन दर में काफी गिरावट आई है। यह चौथे सर्वेक्षण (2015-16) में 2.2 थी, जो पांचवें सर्वेक्षण (2019-20) में रिप्लेसमेंट लेवल से भी नीचे, 1.9 पर आ गई।

गरीब सर्वाधिक प्रभावित

सितंबर 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि एक खास स्टैंडर्ड पर पहुंचने के बाद लोग अपने बच्चों के प्रति कर्तव्यों को लेकर ज्यादा सचेत हो जाते हैं। उन्हें जो मिला, बच्चों के लिए उससे ज्यादा चाहते हैं। इसलिए वे स्वयं छोटा परिवार रखना चाहते हैं।

उत्तर प्रदेश हो या असम, दंडात्मक नीति का सबसे अधिक असर गरीबों और वंचितों पर होगा। यह तथ्य है कि जन्म दर वहां ज्यादा है जहां सामाजिक-आर्थिक विकास कम हुआ, स्वास्थ्य सेवाएं पर्याप्त नहीं हैं। मुतरेजा कहती हैं, ड्राफ्ट बिल के प्रावधान लागू हुए तो लैंगिक असमानता बढ़ेगी, स्त्री-पुरुष अनुपात बिगड़ेगा और कुपोषण बढ़ेगा। दो बच्चे की नीति महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं तक उनकी पहुंच पहले ही कम है। ऐसी नीतियों से वे और प्रभावित होंगी। लोग बच्चे के लिंग के बारे में जानना चाहेंगे और असुरक्षित गर्भपात बढ़ेगा। एनएफएचएस-4 के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 1000 लड़कों पर 995 लड़कियां हैं। लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान जन्म के समय यह अनुपात काफी बिगड़ गया है। प्रत्येक 1000 लड़कों की तुलना में सिर्फ 903 लड़कियों ने जन्म लिया।

मुतरेजा एक और चिंताजनक तथ्य बताती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार दशकों से पुरुष एवं महिला बंध्याकरण को प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन आज भी आधुनिक गर्भनिरोधक अपनाने में पुरुषों का अनुपात एक फीसदी से भी कम है। यानी परिवार नियोजन का पूरा भार महिलाओं पर आ जाता है। इसलिए महिला बंध्याकरण ज्यादा होता है। उत्तर प्रदेश में आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों में महिला बंध्याकरण 55% है।

एनएफएचएस-4 के आंकड़े बताते हैं कि लड़कियों की शिक्षा से प्रजनन दर कम करने में काफी मदद मिलती है। सर्वेक्षण के अनुसार अशिक्षित महिलाएं औसतन 2.6 बच्चे चाहती हैं जबकि 12वीं तक पढ़ी महिलाएं 1.8 बच्चों को पर्याप्त मानती हैं। दूसरी तरफ राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार महिला साक्षरता के मामले में उत्तर प्रदेश नीचे से पांचवें स्थान पर है। यहां 63.4 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं।

राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग की पूर्व सदस्य रमी छाबड़ा का सुझाव है कि महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और पुरुषों की 25 साल कर दी जाए। देर से शादी और देर से बच्चा होने पर दो पीढ़ियों के बीच अंतर बढ़ेगा और आबादी स्थिर होगी। पिछली जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में 52 फीसदी लड़कियों की शादी 20 साल से पहले हो गई। यूनिसेफ के अनुसार प्रदेश में 18 से कम उम्र की 3.6 करोड़ ब्याही लड़कियां हैं, यह संख्या बाकी प्रदेशों से अधिक है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकारी अंकुश से जनसंख्या नियंत्रण भारत में कारगर नहीं। चीन ने एक बच्चे की नीति अपनाकर जनसंख्या पर जरूर नियंत्रण किया, लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में वैसी अमानवीय कार्रवाई मुमकिन नहीं। यहां आपातकाल (1975-77) में पुरुष नसबंदी का काफी विरोध हुआ था। महिलाओं को शिक्षा और रोजगार ही प्रजनन दर कम करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका हो सकता है। आर्थिक संपन्नता के साथ प्रजनन दर स्वतः कम हो जाती है।

मुतरेजा इन उपायों के अलावा महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने, परिवार नियोजन सुविधाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ाने और खासकर दो बच्चों के बीच अंतर बढ़ाने की वकालत करती हैं। वे कहती हैं, हम बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से भी सीख सकते हैं जिन्होंने गर्भनिरोधकों के विकल्प बढ़ाकर तथा महिला शिक्षा एवं परिवार नियोजन पर ज्यादा निवेश करके प्रजनन दर को कम किया है। भारत में भी केरल और तमिलनाडु में बिना किसी सख्ती के प्रजनन दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है। केरल ने तो बालिका शिक्षा, रोजगार के अवसर, महिला सशक्तीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करके 1.6 प्रजनन दर हासिल की है।

मुतरेजा के अनुसार दूसरे राज्यों के अनुभव बताते हैं कि महिलाओं पर ऐसी नीतियों का विपरीत प्रभाव पड़ा है। वरिष्ठ आइएएस निर्मला बुच के 2005 के अध्ययन के अनुसार स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की खातिर तीसरे बच्चे से इनकार करने के लिए पुरुषों ने अपनी पत्नियों को छोड़ दिया, अथवा बच्चा किसी और को गोद दे दिया। गर्भ में बेटी होने पर गर्भपात बढ़ गया। दो बच्चे की नीति से हरियाणा और पंजाब में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात बहुत कम हो गया। मुतरेजा बताती हैं, “इसी का नतीजा है कि महिलाओं को दुल्हन के रूप में बेचा जाता है, यौन कर्मी बनने के लिए मजबूर किया जाता है, उनके साथ गुलामों जैसा बर्ताव होता है, मारपीट की जाती है और अंततः उन्हें छोड़ दिया जाता है।” 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बेटे की चाहत वाले भारतीय समाज में 25 साल तक उम्र की 2.1 करोड़ अनचाही बेटियां हैं।

 

ऐसा होगा उत्तर प्रदेश का जनसंख्या नियंत्रण कानून

सरकारी कर्मचारी

दो बच्चों के नियम का पालन करने पर

-पूरे सेवा काल में दो अतिरिक्त इन्क्रीमेंट

-हाउसिंग बोर्ड या डेवलपमेंट अथॉरिटी से घर या प्लॉट खरीदने पर सब्सिडी

-होम लोन पर ब्याज में रियायत, पानी बिजली के बिल और हाउस टैक्स में भी रियायत

-पूरे वेतन और भत्ते के साथ 12 महीने का मातृत्व या पितृत्व अवकाश

-पेंशन फंड में सरकार की तरफ से तीन फीसदी ज्यादा योगदान

-जीवनसाथी को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा और बीमा

 

एक बच्चा होने पर उपरोक्त के अलावा

-पूरे सेवा काल में दो अतिरिक्त इन्क्रीमेंट, बच्चे को सरकारी नौकरी में वरीयता

-बच्चे के 20 साल के होने तक मुफ्त स्वास्थ्य सेवा और बीमा

-आइआइएम, एम्स जैसे संस्थानों में दाखिले में प्राथमिकता

-ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा, बेटी होने पर उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप

 

सामान्य नागरिक

-सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली कई सुविधाएं इन्हें भी मिलेंगी

-गरीबी रेखा से नीचे के दंपती का एक ही बच्चा हुआ तो बेटा होने पर 80 हजार और बेटी होने पर एक लाख रुपये मिलेंगे

दो से अधिक बच्चे होने पर

-सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा, कानून लागू होते वक्त जिनके दो से अधिक बच्चे हैं वे इसके दायरे में नहीं आएंगे

-सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, नौकरी में हैं तो प्रमोशन नहीं मिलेगी, जो पहले से सरकारी नौकरी में हैं उन पर नियम लागू नहीं होगा

-स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, जो पहले से निकाय के सदस्य हैं उन पर यह नियम लागू नहीं होगा

-दो से अधिक बच्चे वाले निकाय सदस्य या सरकारी कर्मचारी शपथ पत्र देंगे कि वे और बच्चे नहीं करेंगे। उल्लंघन करने पर सदस्यता या नौकरी चली जाएगी

इन्हें छूट

दूसरी प्रेग्नेंसी में जुड़वां बच्चे होने, दो बच्चे के बाद तीसरा बच्चा गोद लेने, पहला और/या दूसरा बच्चा विकलांग होने के बाद तीसरा बच्चा होने, एक या दोनों बच्चे की मौत के बाद तीसरा बच्चा करने पर नियम का उल्लंघन नहीं माना जाएगा

दूसरे देशों में क्या

 

चीनः 1960 के दशक में प्रजनन दर 6 से ज्यादा थी। 1979 से 2015 तक एक बच्चे की नीति रही, तब दर घट कर 3 से नीचे आ गई। अभी 1.7 है। वृद्ध आबादी की समस्या को देखते हुए 2016 से दो बच्चे की नीति अपनाई गई। अब तीन बच्चे को प्रोत्साहन।

हांगकांगः 1970 के दशक में ‘दो ही काफी’ अभियान चला, लोगों को शिक्षित किया गया जिससे जन्म दर घटी। अभी प्रजनन दर 1.04 है। अब आबादी बढ़ाने की पहल। प्रति बच्चा एक लाख हांगकांग डॉलर के टैक्स अलाउंस नौ बच्चों तक लिए जा सकते हैं।

सिंगापुरः जन्म दर घटाने के लिए 1966 में नीति, ‘स्टॉप एट टू’ कार्यक्रम चलाया। 1978 में प्रजनन दर 2 से नीचे आ गई। आबादी घटी तो 1987 में तीन या अधिक बच्चे की नीति लानी पड़ी।

वियतनामः 1960 के दशक से एक या दो बच्चे की नीति। 1985 में दो बच्चों वाले परिवार के लिए इन्सेंटिव और उल्लंघन करने पर पेनल्टी जैसे नियम। 1979 में प्रजनन दर 5.6 थी जो 1993 में घटकर 3.2 पर आ गई, अभी यह 1.8 है।

ईरानः 1990 के दशक से 2006 तक दो बच्चों की नीति। 2006 में नीति खत्म कर दी गई। 2012 में अयातुल्लाह खोमैनी ने कहा कि 20 साल पहले ऐसी नीति ठीक थी, अब नहीं। क्योंकि इससे हमें बुजुर्ग और घटती आबादी की समस्या का सामना करना पड़ेगा।

इंग्लैंडः 5 अप्रैल 2017 से दो बच्चों की नीति। टैक्स में छूट और अन्य सरकारी सुविधाएं पहले दो बच्चों तक ही मिलेगी।

 

घट रही प्रजनन दर

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TAGS: जनसंख्या नियंत्रण कानून, जनसंख्या नीति, भारत में जनसंख्या नीति, जनसंख्या नीति और राजनीति, Population Control Laws, Population Policy, Population Policy in India, Population Policy and Politics
OUTLOOK 29 July, 2021
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