अब अमेरिकी ऊंट पहाड़ के नीचे। आलोक मेहता
इस सप्ताह न्यूयार्क-न्यूजर्सी में हुए धमाके से जुड़े संदिग्ध आतंकवादी संगठनों से जुड़े तारों, उसकी पाकिस्तानी यात्राओं और साथियों के भी सूत्र मिले हैं। इससे अमेरिकी प्रशासन को दानवी बारूद के पहाड़ का कष्ट महसूस हुआ। अमेरिकी नेताओं और राजनयिकों का रुख कड़ा हुआ है। अब वह पाकिस्तान को अपने परमाणु हथियारों पर भी नियंत्रण की सलाह दे रहा है। भारत इस मुद्दे को अधिक प्रामाणिक और प्रभावशाली ढंग से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पाकिस्तान आतंकवादियों को रोबोट फैक्टरी की तरह तैयार कर रहा है। लेकिन फिलहाल उसे दूसरी महाशक्ति चीन का वरदान मिला हुआ है। अमेरिका की नाराजगी बढ़ने पर वह पूरी तरह चीन की गोद में बैठने की कोशिश कर सकता है। यह बात अलग है कि देर-सबेर चीन को भी आतंकवादी गतिविधि से प्रभावित होने पर अपना हाथ पीछे खींचना पड़ेगा।
चीन के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में पिछले वर्षों के दौरान आतंकवादी धमाके हो चुके हैं। कम्युनिस्ट शासन ने अपनी विफलता को दबा लिया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन आतंकवाद के विरुद्ध आवाज उठाने में सहयोग देता है। रूस तो बहुत पहले से आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष का हिमायती है। आखिरकार, रूस को अफगानिस्तान से हटाने के लिए अमेरिका-पाकिस्तान ने ही तालिबान को आगे बढ़ाया। इस भस्मासुर ने न केवल एशिया वरन आधी दुनिया को आतंकवादी गतिविधियों की आग से प्रभावित कर दिया। महाशक्तियों को आई.एस.आई.एस. के साथ पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों और ठिकानों को भी निशाना बनाना होगा। यह संपूर्ण विश्व के लिए जरूरी हो गया है।