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19 September 2016

कश्मीर मुद्दे पर मीडिया का हमला। आलोक मेहता

अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस सद्भावना यात्रा के बाद सन 1999 में कारगिल में सैन्य घुसपैठ और भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई ‌ऑपरेशन विजय ने पाकिस्तान की हालत खराब कर दी थी। इस बार कश्मीर के उड़ी क्षेत्र में सामान्य प्रशासकीय व्यवस्‍था के लिए पहुंची सैन्य टुकड़ी के टेंटों पर देर रात के अंधेरे में घुसकर िकए गए आतंकवादी हमले में 17 सैनिक मारे गए। कश्मीर में पिछले दो महीनों में अशांति और हिंसा भी पाकिस्तान द्वारा ही प्रायोजित रही है। लेकिन भारतीय सेना की मुस्तैदी से पिछले कई महीनों से घुसपैठ की घटनाएं कम हुई थीं। वहीं यह भी याद रखा जाना चाहिए कि मई 2002 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने कालुचक इलाके में पर्यटक बस पर हमला करके 31 लोगों की हत्या कर दी थी। कालुचक कश्मीर-हिमाचल की सीमा पर है। इस बस में भी सेना के 3 जवान, सैनिक परिवारों के 18 सदस्य और 10 सामान्य भारतीय नागरिक शामिल थे।

अटलजी ने इसे भयावह अमानवीय नरसंहार की घटना बताया था और तत्कालीन रक्षा मंत्री जसवंत सिंह ने भी माना कि पाकिस्तान ने युद्ध की स्थिति पैदा कर दी थी। फिर भी भारत ने धैर्य रखा। इस बार भी सरकार, भाजपा, संघ तथा अन्य दलों के नेता भी पाकिस्तान की इस घुसपैठ को हमले के रूप में ही मानते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और सेनाध्यक्षों ने गंभीर विचार-विमर्श किया है और पाक को उचित जवाब की रणनीति भी बन रही है। लेकिन हमारे मीडिया का एक बड़ा वर्ग तो भारत को युद्ध का शंखनाद करने का उत्तेजक संदेश दे रहा है। टी.वी. समाचार चैनलों पर सैन्य वर्दीधारी बाकायदा ‘पाकिस्तान का नाम नहीं रहेगा’ के गीत सुना रहे हैं। इसी तरह टी.वी. के कुछ प्रस्तुतकर्ता और आमंत्रित विशेषज्ञ हमले के जवाब में सेना द्वारा पाकिस्तानी सीमा में घुसकर सबक सिखाने की गर्म बातें कर रहे हैं।

टी.वी. और प्रिंट मीडिया का एक वर्ग युद्ध को अंतिम रास्ता बता रहा है। लेकिन सरकार के रणनीतिकार या सुलझे हुए रक्षा विशेषज्ञ एवं राजनयिक जल्दबाजी में किसी कार्रवाई के पक्ष में नहीं हैं। पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करवाने या उसे अमेरिकी-चीन की सहायता रुकवाने जैसे प्रयास के साथ सीमा पर आतंकवादियों के घुसने पर उन्हें वहीं खत्म करने जैसे कदम अवश्य होने वाले हैं। लेकिन द्वापर युग में श्रीकृष्‍ण ने महाभारत के युद्ध को रोकने की हर संभव कूटनीतिक कोशिश की थी। वर्तमान परिस्थितियों में पाकिस्तान के गैर जिम्मेदार जाहिल मंत्री या सिरफिरे सेनाधिकारी परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी दे सकते हैं। लेकिन भारत इस तरह की धमकी या पाक के भड़काऊ कार्रवाई मात्र से जाल में नहीं फंसने वाला है। इस दृष्टि से भारत के जिम्मेदार मीडिया को भी ‘युद्ध’ के अंतिम अस्‍त्र के बजाय पाकिस्तान की गरीब जनता, पाकिस्तान अधिकृत गुलाम कश्मीर की दुर्दशा और पाकिस्तान के भ्रष्ट, बेईमान और वहशी सेनाधिकारियों का पर्दाफाश दुनिया के सामने करना चाहिए।

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TAGS: uri attack, alok mehta, उरी हमला, आलोक मेहता
OUTLOOK 19 September, 2016
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