जेएनयू में योग और सांस्कृतिक पाठ्यक्रम का प्रस्ताव फिर हुआ खारिज
जेएनयू में योग और संस्कृति जैसे तीन विषयों में तीन अल्पकालिक पाठ्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव पिछले साल आया था। यह प्रस्ताव भारत की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने और उसकी सांस्कृतिक पहचान को बहाल करने के लिए शैक्षिक परिसरों में संस्कृति को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से आरएसएस सहित दक्षिणपंथी संगठनों के जोर दिए जाने की पृष्ठभूमि में आया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के साथ कई संवाद करने के बाद जेएनयू ने पिछले साल अपने विभिन्न स्कूलों और विभागों की प्रतिक्रिया हासिल करने के लिए उन्हें तीन पाठ्यक्रमों का मसौदा वितरित किया था। विश्वविद्यालय के वैधानिक निर्णय लेने वाले निकाय अकादमिक परिषद (एसी) ने नवंबर में यह प्रस्ताव खारिज कर दिया था। बहरहाल, विश्वविद्यालय ने मई में इस पर पुनर्विचार का फैसला किया और विभागों से प्रस्तावित पाठ्यक्रम ढांचे पर पुनर्विचार करने तथा इसे परिषद के समक्ष पेश करने को कहा। परिषद के एक सदस्य ने बताया फिर से तैयार मसौदे को पिछले सप्ताह एसी के समक्ष रखा गया और बहुमत से सदस्यों ने इसे अस्वीकार कर दिया।
प्रस्तावित मसौदे के अनुसार, भारतीय संस्कृति में पाठ्यक्रम का उद्देश्य देश की संस्कृति के महत्व के साथ-साथ उसकी व्युत्पत्ति, सामाजिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक पहलुओं की व्याख्या करना और विश्व भर में भारतीय मूल्यों की स्थापना करना है। मसौदे में कहा गया, पाठ्यक्रम में अन्य बातों के अलावा भारतीय संस्कृति के धार्मिक पक्ष सहित विभिन्न संस्कृतियों की परंपराएं, विचार एवं पाठ को शामिल किया जाएगा। साथ ही इसमें वेद तथा महाकाव्यों और जातक कथाओं के चयनित अंश एवं रामायण जैसे हिंदू महाकाव्यों को पढ़ने के बारे में सुझाव भी होंगे। इसमें भारतीय संस्कृति का मूल अध्ययन होगा ताकि भारतीय परंपराओं और मूल्यों को दुनिया भर में स्थापित किया जा सके। मसौदे में आगे कहा गया कि भारतीय साहित्य की मदद के बिना भारतीय संस्कृति को नहीं समझा जा सकता। मसौदे में हिंदू धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों का प्रकाशन करने वाले गोरखपुर के गीता प्रेस की रामायण और भगवद गीता, आचार्य जयदेव की वैदिक संस्कृति, रामधारी सिंह दिनकर की संस्कृति के चार अध्याय सहित अन्य ग्रंथों के अध्ययन का सुझाव भी दिया गया।