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31 October 2015

असहिष्णुता पर बोले रघुराम राजन, परस्पर सम्मान जरूरी

आउटलुक

राजन ने कहा कि भारत की विचार विमर्श की परंपरा और सवाल उठाने की मुक्त भावना आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हरेक सत्ता और परंपरा को चुनौती देने को प्रोत्साहन देने से सत्ता में होने के कारण किसी खास विचार या विचारधारा को थोपने की संभावना खारिज नहीं रहेगी। कन्नड़ लेखक एम.एम कलबुर्गी की हत्या और दादरी में एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डालने और इसके बाद हुई हिंसा की घटनाओं के मद्देनजर बढ़ती असहिष्णुता की पृष्ठभूमि में उन्होंने यह भी कहा कि सवाल खड़ा करने और चुनौती देने के अधिकार की रक्षा भारत की वृद्धि के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा, सहिष्णुता का अर्थ है किसी विचार के प्रति इतना भी असुरक्षित नहीं हों कि कोई उसे चुनौती न दे दे, यह कुछ हद तक अनासक्त होना है जो परिपक्व विमर्श के लिए बेहद आवश्यक है।

 

रघुराम राजन अपने पूर्व संस्थान, आईआईटी दिल्ली, में दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ऐसे दुर्लभ मामलों में जहां विचार किसी समूह के मूल चरित्र से गहरे तक जुड़े हों वहां सम्मान की जरूरत है और ऐसे मामलों में चुनौती देते समय हमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी है। उन्होंने कहा कि सहिष्णुता से विचार-विमर्श में आने वाला रोष खत्म किया जा सकता है और सम्मान भी बना रह सकता है। राजन ने अमेरिका की मिसाल देते हुए कहा कि वहां राष्ट्रीय झंडे को जलाने से वैसी प्रतिक्रिया नहीं होती क्योंकि समाज समय के साथ इसके प्रति सहिष्णु हो गया और अब इसका उपयोग किसी को झटका देने के लिए नहीं किया जाताउन्होंने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा आचार-व्यवहार परस्पर सहिष्णुता का स्वर्णिम नियम है क्योंकि हम सभी एक जैसा नहीं सोचेंगे और हम सत्य को टुकड़ों में तथा अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं।

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राजन ने कहा कि हर विचार की बारीकी से समालोचनात्मक जांच होनी चाहिए चाहे वे देशी हों या विदेशी, चाहे वे हजारों साल में पैदा हुए हों या कुछ मिनट पहले, चाहे वे अनपढ़ छात्र के हों या विश्व प्रसिद्ध प्रोफेसर के। कोई भी बात ऐसी नहीं होनी चाहिए जिस पर सवाल नहीं उठाया जाए। विचारों को लेकर ऐसी प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तो इसमें स्थिरता आ जाएगी। गवर्नर ने कहा कि दूसरा आवश्यक पहलू है कुछ विचारों और परंपराओं की रक्षा करना लेकिन सवाल खड़ा करने तथा चुनौती देने के अधिकार और तब तक अलग तरीके से व्यवहार करने के अधिकार की भी रक्षा करनी होगी जब तक कि दूसरों पर इसका गंभीर असर नहीं होता है। उन्होंने कहा, समाज जिन्हें विकसित करता है, उन नवोन्मेषी विद्रोहियों की चुनौती को प्रोत्साहन देकर इसकी रक्षा में सामाज का अपना हित है। सौभाग्य से भारत ने हमेशा विचार विमर्श और विभिन्न मतों के अधिकर की रक्षा की है।

 

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि किसी भी काम जिससे किसी को शारीरिक क्षति पहुंचती है या किसी विशेष समूह के लिए अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है जिससे विचारों के मंच पर समूह की भागीदारी प्रभावित होती है, की निश्चित तौर पर अनुमति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा यौन उत्पीड़न, चाहे शारीरिक हो या शाब्दिक, इसकी समाज में कोई जगह नहीं। साथ ही उन्होंने कहा कि विभिन्न समूहों को भी हर जगह महत्वहीन चीजों पर ध्यान नहीं देना चाहिए कि जिससे चीजें ज्यादा अपमानजनक दिखें। मनोविज्ञान में पुष्टि पूर्वाग्रह का सिद्धांत है कि कोई अपमानजनक व्यवहार की तलाश करना शुरू करता है तो उसे हर तरफ वही दिखता है, यहां तक कि सीधे-साधे बयान में भी।

 

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राजन के भाषण पर टिप्पणी करते हुए ट्विटर पर लिखा, उन्हें रिजर्व बैंक जाकर अपना काम करना चाहिए, उन्हें बुजुर्गों की तरह नहीं बोलना चाहिए। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, क्या अब भी भाजपा यही कहेगी कि प्रणब मुखर्जी और रघुराम राजन का असहिष्णुता के खिलाफ आज का भाषण भी कृत्रिम विरोध था। वहीं भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा हम उनके बयान का स्वागत करते हैं। सहिष्णुता है, इसीलिए हम प्रगति कर रहे हैं।

 

 

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TAGS: आरबीआई, गवर्नर, रघुराम राजन, असहिष्णुता, एम.एम कलबुर्गी, दादरी, आईआईटी दिल्ली, सुब्रमण्यम स्वामी, मंत्री पी. चिदंबरम, संबित पात्रा
OUTLOOK 31 October, 2015
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