दागियों को पार्टी अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
राजनीतिक दल चलाने और उनका नेतृत्व करने से दागियों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए की वैधता एवं रूप रेखा की समीक्षा करने पर भी सहमति जताई है।
वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर करते हुए दागी नेताओं को पार्टी का नेतृत्व करने से रोकने की मांग की है। याचिका में केंद्र और चुनाव आयोग को यह आदेश दिए जाने की मांग की गई है कि वे चुनाव प्रणाली को अपराधमुक्त करने के दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार करें और संविधान के कामकाज की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय आयोग के प्रस्ताव के अनुसार पार्टी के भीतर लोकतंत्र सुनिश्चित करें।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि कानून के अनुसार दोषी नेता चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन वह राजनीतिक दल चला सकता है और उसमें पदों पर बने रह सकता है। इसके अलावा वह यह निर्णय भी ले सकता हे कि कौन सांसद या विधायक बनेगा। याचिका में ऐसे कई शीर्ष नेताओं के नाम लिए गए हैं, जो दोषी ठहराए जा चुके हैं या जिनके खिलाफ आरोप तय किए गए हैं और वे ऊंचे राजनीतिक पदों पर आसीन हैं तथा राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसमें दावा किया गया है कि ऐसा व्यक्ति भी राजनीतिक दल गठित कर सकता है और उसका अध्यक्ष बन सकता है जो हत्या, दुष्कर्म, तस्करी, धनशोधन, लूटपाट, देशद्रोह या डकैती जैसे जघन्य अपराधों का दोषी है। इसमें यह भी कहा गया है कि राजनीतिक दलों की संख्या तेजी से बढ़ना चिंता का एक बड़ा कारण बन गया है, क्योंकि कानून की धारा 29ए कम लोगों के एक समूह को भी बेहद साधारण घोषणा करके एक पार्टी का गठन करने की अनुमति देती है।