राम मंदिर पर जल्द सुनवाई करने वाली याचिका को सु्प्रीम कोर्ट ने किया खारिज, जनवरी में होगी सुनवाई
अयोध्या में राम मंदिर मसले पर जल्द सुनवाई की मांग करने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह पहले ही इस मामले की सुनवाई जनवरी में तय कर चुका है और उससे पहले इस मसले पर कोई सुनवाई नहीं होगी।
जरूरी नहीं कि जनवरी में हो नियमित सुनवाई
एक तरफ जहां सरकार समर्थित लोग इस पर जल्द से जल्द सुनवाई चाहते हैं तो वहीं विपक्ष सुनवाई टालने पर जोर दे रहा है। पिछले महीने की 29 तारीख को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई वाली तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा था कि जनवरी में एक पीठ यह तय करेगी कि इस मसले की सुनवाई कब होगी। माना जा रहा है कि अगले साल जनवरी के पहले सप्ताह में पीठ इसकी सुनवाई तय कर सकती है। इससे यह भी तय है कि मामले की सुनवाई की आगे के महीनों में भी की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर पर यह याचिका साल 2010 में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के विरोध में दायर की गई है जिसमें विवादित भूमि को तीन भागों में बांट दिया गया था।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को 5 जजों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इनकार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि 'मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं' है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। शीर्ष अदालत के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
बता दें कि अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।
क्या है अयोध्या विवाद?
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल है। बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा यथास्थिति बहाल कर दी थी।