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02 June 2015

खुदमुख्तारी की सजा हिंसा

आउटलुक

 जहां भी ये घटनाएं हो रही हैं, चाहे वह राजस्थान में हो या महाराष्ट्र में या उत्तर प्रदेश या उड़ीसा में, हर जगह प्रशासन की भूमिका एक ही तरह की है, खामोश दर्शक या मौन समर्थक। वह पीडि़त के साथ खड़ा नजर नहीं आता। क्या यह बैकलैश है यानी क्या यह प्रतिक्रिया है।

बैकलैशः

घटनाएं इस बात की गवाही दे रही हैं कि यह बैकलैश है, क्योंकि तकरीबन हर मामले में हिंसा करने वाले समूह का मकसद दलितों को सबक सीखाना रहा है। चाहे वह राजस्थान के नागौर के डांगावास गांव की दलितों पर ट्रैक्टर चलवाने की नृशंस घटना हो या फिर उत्तर प्रदेश के शहजहांपुर के हरेवा गांव में दलित महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने की घटना हो या फिर महाराष्ट्र के शिरडी में दलित नौजवान की अंबेडकर की रिंग टोन पर की गई बर्बर हत्या का मामला हो। ऐसे तमाम मामलों में दलित समुदाय के खुदमुख्तार होने, पहले की तरह तथाकथित ऊंची जातियों का दबदबा मानने से इनकार करने से समाज में पैदा हुई खदबदाहट को देखा-समझा जा सकता है। नफरत की पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। जमीन पर कब्जे की बात को लेकर दलित महिलाओं-पुरुषों पर ट्रेक्टर दौड़ाए जा रहे हैं, महिलाओं के गुप्तांगों में लकड़ियां डाली जा रही हैं, पुरुषों के यौन अंगों को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है, वहीं अंबेडकर की महानता बताने वाले रिंगटोन पर उत्तेजित होकर दलित युवक को मोटरसाइकिल से रौंद कर मार डालना, दलित लड़के का गैर दलित लड़की से प्यार करने की सजा के रूप में लडक़े के परिवार की महिलाओं को निर्वस्त्र करके गांव भर में घुमाना और दलित दूल्हे का घोड़ी पर चढ़कर जाने पर बवाल काटना, दलित लढ़की के इनकार करने पर उसके साथ सामुहिक बलात्कार करना, तेजाब डाल चेहरा खराब कर मार डालना...ऐसी अनेक घटनाएं हमारे इर्द-गिर्द हो रही हैं। हर घटना सीधे-सीधे यह दर्शा रही है कि दलितों के भीतर आए आत्मसम्मान और हक का अहसास से गैर-दलित समाज में और खासतौर से उसके युवावर्ग में बदला लेने का भाव बढ़ रहा है।

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नागौरः ट्रैक्टर से रौंदा

राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास गांव में 14 मई को जिस तरह गांवों के जाटों ने हमला करके हिंसा की, उससे इस घटना की तुलना महाराष्ट्र के खैरलांजी कांड से हो रही है। इसमें अब तक (खबर लिखे जाने तक) पांच लोगों की मौत हो चुकी है, कई लोग अस्पताल में घायल हैं, जिनकी हालत नाजुक बताई जाती है। हिंसक वारदात में तीन दलितों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई, जिनमें रतनाराम मेघवाल, पोकरराम, पंचाराम शामिल हैं और रामपाल गोस्वामी की मौत हुई। बाद में अस्पताल में गणपत राम की मौत हो गई। दलितों पर ट्रेक्टर दौड़ाने और दलित महिलाओं के गुप्तांगों में लकड़ियां डालने, आदमियों की आंखों को फोड़ने आदि के मामले सामने आए। हालांकि खबर लिखे जाने तक महिलाओं की मेडिकल जांच नहीं कराई गई थी। इस घटना की जांच के लिए टीम लेकर गईं पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की कविता श्रीवास्तव ने बताया कि डांगावास में जिस तरह दलितों पर संगठित हमला किया गया और पुलिस प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया, वह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार, उसके सांसद, विधायक, उसके दलित नेता यहां नहीं आया। कांग्रेस ने भी इसे बड़ा मुद्दा नहीं बनाया। हम इस पर खुला पत्र लिख रहे हैं। तमाम जांच दलों की रिपोर्ट के मुताबिक जाटों ने बाकायदा पंचायत करके दलितों को सबक सिखाने का फैसला किया। इस बारे में आउटलुक को मजदूर-किसान शक्ति संगठन के भंवर मेगवंशी ने इस घटना के बारे में विस्तार से बताया कि डांगावास के एक दलित दौलाराम मेघवाल के बेटे बस्तीराम की 23 बीघा 5 बिस्वा जमीन पर चिमनाराम नामक दबंग जाट ने 1964 से कब्जा कर रखा था। जिसे बाद में उनके बेटे रतना राम ने अदालत में लंबी लड़ाई लड़कर वापस हासिल किया। रतनाराम मेघवाल ने यहां एक कच्चा घर बनाकर रहना शुरू कर दिया। यह बात इस जमीन पर कब्जा किए चिमनाराम जाट के बेटों ओमाराम और कानाराम जाट को नागवार गुजरी। उन्होंने दोबारा कब्जे की कोशिश की। इसकी शिकायत रतना राम मेघवाल ने 21 अप्रैल को मेड़ता थाने में की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर उन्होंने जानमाल की सुरक्षा की गुहार 11 मई को की। 14 मई 2015 की सुबह 9 बजे के डांगावास के जाट समुदाय की अवैध पंचायत के बाद तकरीबन 500 लोगों की भीड़ रतना राम मेघवाल की जमीन पर पहुंची, उस समय खेत पर 16 परिजन मौजूद थे। भंवर ने बताया कि भीड़ हिंसक हो गई और दलितों को ट्रैक्टरों से कुचलने की कोशिश होने लगी। तीन दलितों और एक गैर दलित की मौके पर मौत हो गई। बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। हिंसा का यह तांडव दो घंटे तक रहा और तीन किलोमीटर दूर पर पुलिस थाने की तरफ से कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ। इस पूरी घटना पर राजस्थान सरकार ने जबर्दस्त उदासीनता दिखाई। राजस्थान में 34 दलित विधायक हैं जिनमें से 16 मेघवाल समुदाय से हैं और इस घटना पर सिर्फ एक विधायक बोलीं और बाकी सब चुप रहे।

शिरडीः बाइक से रौंदा

ऐसी ही उदासीनता महाराष्ट्र के शिरडी में घटी जहां एक दलित युवक की बेरहमी से पिटाई कर हत्या कर दी गई। इस घटना के बारे में वहां जांच दल के साथ गए दलित आदिवासी अधिकार आंदोलन के संयोजक प्रियदर्शी ने बताया कि नासिक में नर्सिंग की पढ़ाई करा दलित छात्र सागर शेजवाल एक शादी में शिरडी आया था। वह अपने साथियों के साथ बार में बैठा था, जहां कुछ ही दिन पहले जेल से जमानत पर छूटे विशाल कोटे और उसके सात साथियों से विवाद हो गया। विवाद का कारण बना सागर का रिंगटोन जिसपर बाबा साहेब आंबेडकर पर यह गाना लगा था, तुम चाहे करो जितना हल्ला, मजबूत होगा भीम का किला। बताया जाता है कि इसी रिंगटोन को लेकर विवाद बढ़ गया और उन्होंने सागर पर बियर की बोतल के साथ हमला बोल दिया। ये सब सीसीटीवी फुटेज पर आ गया, जिसके आधार पर पुलिस ने गिरफ्तारी की। मामला यहीं रुका नहीं। ये युवक सागर को बाइक पर डालकर करीब 10 किलोमीटर दूर ले गए और बाद में नग्न अवस्था में लाश मिली। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक सागर के शरीर में करीब 25 जख्म थे। बताया जाता है कि लाश की स्थिति देखकर पुलिस का मानना है कि सागर के शरीर पर लगातार बाइक चलाई गई होगी। सभी हमलावर स्थानीय प्रभुत्वशाली मराठा और ओबीसी समुदाय से हैं। दुख में डूबे सागर के पिता सुभाष शेजवाल का कहना, 'कितनी कू्ररता से हमले किए होंगे। लड़ाई किसी वक्त हो सकती है लेकिन ऐसी कू्ररता। वे छोटी सी बात पर इस हद तक क्यों गए?

शहाजहांपुरः निर्वस्त्र घुमाया

यह सवाल देश भर में अनुत्तरित है। उत्तर प्रदेश के शहाजहांपुर में हरेबा गांव में एक दलित लडक़े ने कश्यप समुदाय की लड़की से प्रेम किया और दोनों घर छोड़कर चले गए। इसका खौफनाक खामियाजा लडक़े के परिवार की महिलाओं को उठाना पड़ा। सुबह-सुबह गांव के कश्यप समुदाय के लोगों ने लड़के के घर पर धावा बोला और महिलाओं को पाकर, उन्हें निर्वस्त्र कर पूरे गांव में घुमाया। सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत कथेरिया ने बताया कि जिस तरह इन महिलाओं को घुमाया गया और उनका अपमान किया गया, वह सामंती सोच को बताता है।

इन तमाम घटनाओं पर अनुसूचित जाति आयोग के पीएल पूनिया ने आउटलुक को बताया कि चाहे वह मध्य प्रदेश में दलित दूल्हे का घोड़ी पर चढ़ने का मामला हो या अंबेडकर का रिगंटोन सुनने या जमीन पर हक जताने का मामला है, इसकी विभिन्न जातियों में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। नई सरकार के शासन में दलितों पर हमले ज्यादा तेज हुए हैं क्योंकि तथाकथित ऊंची जातियों को राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त है। 

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TAGS: दलित अत्याचार, नागौर, शाहजहांपुर, निर्वस्त्र, बैकलैश, महाराष्ट्र
OUTLOOK 02 June, 2015
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