आईआईटी कानपुर में रैगिंग के नाम पर यौन शोषण, प्रोफेसर के ब्लॉग से हुआ खुलासा
प्रतिष्ठित आईआईटी कानपुर में रैगिंग के नाम पर यौन शोषण का एक मामला सामने आया है। यहां के प्रोफेसर धीरज संघी ने इससे जुड़ा एक ब्लॉग लिखा है, जिससे यह बात सामने आई है। घटना संस्थान के हॉल नंबर 2 में करीब एक महीने पहले हुई थी।
ब्लॉग में कहा गया है कि फर्स्ट इयर के कुछ छात्रों की सीनियर छात्रों ने रैगिंग की और इस रैगिंग को समर्थन भी मिला। ब्लॉग में प्रोफेसर ने लिखा कि रैगिंग में सेकंड इयर के छात्रों ने फर्स्ट इयर के छात्रों के कपड़े उतरवाए और उनसे एक दूसरे के जननांगों को दबाने के लिए कहा। प्रोफेसर संघी इसे यौन शोषण कहते हैं।
प्रोफेसर संघी कहते हैं कि सबसे ज्यादा दु:ख तब होता है जब इस तरह के यौन शोषण को रैगिंग का नाम देकर एक छात्र कहता है कि यह सब फर्स्ट इयर के लड़कों के फायदे के लिए है। उन्होंने ब्लॉग में बताया कि संस्थान के फेसबुक कंफेशन पेज पर भी रैगिंग को काफी समर्थन मिला।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ फर्स्ट इयर के लड़कों ने डीन के पास इसकी शिकायत भी की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे उनसे घृणित कामों को करने के लिए कहा गया। रिपोर्ट के मुताबिक, डीन की अध्यक्षता में बनाई गई एक कमेटी ने कुछ सीनियर छात्रों को मामले में दोषी पाया है।
प्रोफेसर संघी के ब्लॉग के मुताबिक, कमेटी ने शक के आधार पर 22 नाम सुझाए हैं, जो इस रैगिंग में शामिल थे। इन्हें निष्कासित करने की शिफारिश भी की गई है। इस बात का भी अंदेशा जताया जा रहा है कि इनमें से कई लोगों ने शराब भी पी रखी थी।
इस मुद्दे को संस्थान के फैसले लेने वाले अंग सीनेट के सामने भी उठाया गया है, जो मामले पर 21 सितंबर को अंतिम फैसला लेगा। संघी अपने ब्लॉग में कहते हैं, 'रैगिंग के बचाव के लिए ऐसे तर्क दिए जाते हैं कि यह तो आईआईटी कानपुर का ''कल्चर'' है। प्रोफेसर लोगों की कमेटी नहीं बननी चाहिए क्योंकि उन्हें इस ''कल्चर'' के बारे में कुछ नहीं पता। कई लोग यह भी कहते हैं कि इसका कोई सबूत नहीं है। फर्स्ट इयर के कुछ लड़कों की याद्दाश्त के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोई वीडियो रिकॉर्डिंग या फोटो भी नहीं है।'
प्रोफेसर संघी के ब्लॉग की वजह से सोशल मीडिया में भी हलचल मच गई। लोगों ने इसे व्यवस्था की नाकामी बताया। लोगों ने रैगिंग करने वाले छात्रों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग भी की।
रैगिंग के खिलाफ कड़े नियम होने के बावजूद बड़े संस्थानों में नए छात्रों को इस तरह मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करने के मामले सामने आते रहे हैं। जूनियर के इंट्रोडक्शन के नाम पर और सीनियर होने के दंभ के नाम पर की गई रैगिंग ने कई छात्रों को आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर कर दिया। यह भी एक गंभीर मुद्दा है, जो किसी समाज पर एक धब्बा है।