शोभा का अशोभनीय उवाच
सोशल मीडिया पर फिलहाल प्रेस परिषद अथवा अन्य किसी स्वायत्त संस्था की निगरानी-निर्णायक भूमिका नहीं है। देश के कानून इस मामले में अधिक स्पष्ट नहीं हैं और पुराने कानूनों से चलने वाली वैधानिक कार्रवाई की सुनवाई एवं फैसले में वर्षों लगते हैं। इसलिए लोकप्रिय मानी जाने वाली लेखिका शोभा डे द्वारा ओलंपिक के लिए अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर सक्षम पाए जाने वाले खिलाड़ियों का मखौल उड़ाकर अपमान करना कैसे उचित माना जाएगा? शोभा ने ट्विटर पर लिख दिया कि ‘ओलंपिक में टीम इंडिया का लक्ष्य रियो जाओ, सेल्फी लो, खाली हाथ आओ। पैसे और मौकों की बर्बादी।’ स्वाभाविक है कि इस पर खिलाड़ी ही नहीं उनके प्रशंसक, परिजन भी आहत होंगे।
जिमनास्ट हो या हाकी अथवा राइफल शूटिंग या अन्य प्रतियोगिता, महीनों-वर्षों की कड़ी मेहनत और पदक पाने के लक्ष्य के साथ खिलाड़ी ओलंपिक, कॉमनवेल्थ या अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पहुंचते हैं। हम जैसे पत्रकार किसी मैदानी खेल प्रतियोगिता में 10 मिनट भी नहीं टिक सकते। बोलना या लिखना आसान हो सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाप भी हर लेखक नहीं छोड़ सकता। भारतीय खिलाड़ियों को अमेरिका, चीन अथवा यूरोपीय देशों की तरह साधन एवं सुविधाएं नहीं मिलतीं। कई खिलाड़ी तो सुदूर क्षेत्रों से आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने वाले परिवारों के हैं। वे हर स्तर पर चुनौतयों का सामना करते हैं। पिछले ओलंपिकों में स्वर्ण पदक पाने वालों में भारतीय खिलाड़ी भी थे। ऐसे खिलाड़ी इस बार भी रियो पहुंचे हैं। उनमें से कोई स्वर्ण, रजत, कांस्य पदक पाएं या कोई नहीं भी पाए, तो वे अगली प्रतियोगिता के लिए नई तैयारियां कर सकते हैं। उन्हें मौज-मस्ती के लिए जाना कहना एक तरह से अपमान और निराश करने वाली बात है।
ओलंपिक के चयन, संगठनों और सरकार की भूमिका जैसे मुद्दों पर विभिन्न मंचों पर बहस हो सकती है। लेकिन नेता हों या बुद्धिजीवी, खिलाड़ियों और कलाकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। उनकी मानहानि अपराध से कम नहीं है।