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06 August 2019

पूर्वोत्तर राज्यों को विशेष दर्जा देता है 371, लोगों की आशंकाएं दूर कीं सरकार ने

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद दूसरे राज्यों को संविधान के इसी तरह के अनुच्छेदों के तहत विशेष दर्जा को लेकर भी बहस छिड़ गई है। पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 371 को भी हटाने की आशंकाओं के बीच सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसकी ऐसी कोई मंशा नहीं है। इस अनुच्छेद में मुख्य प्रावधान बाहरी व्यक्तियों द्वारा जमीन खरीदने पर प्रतिबंध का है। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही राज्य में जमीन की खरीद पर लगे प्रतिबंध लगाने वाले कानून का बचाव किया है।

अनुच्छेद 371 से न हो कोई छेड़छाड़

पूर्वोत्तर की कई पार्टियों और संगठनों ने केंद्र से अनुच्छेद 371 के साथ कोई छेड़छाड़ न करने की मांग की है। सिक्किम के विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से आश्वासन मांगा है कि अनुच्छेद 371एफ के तहत राज्य का विशेष दर्जा खत्म नहीं किया जाएगा। नगालैंड और मिजोरम में भी इसी तरह की आशंका हैं।

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गृह मंत्री ने कहा, कोई मंशा नहीं

इन आशंकाओं के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अनुच्छेद 370 पर जवाब देते हुए स्पष्ट किया कि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों को कुछ विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 371 को हटाने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्य इस अनुच्छेद के प्रावधानों में आते हैं। उनका यह विशेष दर्जा आदिवासी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए दिया गया था। अनुच्छेद 371 एक नगालैंड, 371बी असम और 371सी, 371जी और 371एच मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश से संबंधित है।

मेघालय में लागू है 371बी

अनुच्छेद 371बी जोड़ने का मुख्य उद्देश्य उप राज्य मेघालय बनाने का रास्ता निकालना था। सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) और हेमरो सिक्किम पार्टी (एचएसपी) का मानना है कि अनुच्छेद 371एफ नहीं हटना चाहिए क्योंकि पूर्वोत्तर की स्थिति जम्मू कश्मीर से बिल्कुल अलग है। 1975 में भारत संघ में विलय के समय से सिक्किम में शांति रही। यह स्थिति जम्मू कश्मीर से भिन्न है। जम्मू कश्मीर से 371 हटने के बाद से सिक्किम में लोग सशंकित हैं।

मिजोरम में 371जी 1987 से लागू

मिजोरम में 371जी 1986 में लागू किया गया था। उस समय के भूमिगत संगठन मिजो नेशनल फ्रंट और केंद्र सरकार के बीच मिजो समझौते के तहत अनुच्छेद लागू हुआ था। उस समय वह केंद्र शासित राज्य था। 20 फरवरी 1987 को उसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। नगालैंड में राजनीतिक पार्टियां और आदिवासी संगठन कहते हैं कि अगर इसी तरह का कदम उनके राज्य के लिए उठाया जाता है तो शांति प्रक्रिया प्रभावित होगी और नगा समुदाय के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी।

हिमाचल के कानून के बचाव में भाजपा और कांग्रेस

उधर, हिमाचल के एक कानून का कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के नेता बचाव कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि जो लोग जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने का विरोध कर रहे हैं, वे हिमाचल के कानून को लेकर गुमराह कर रहे हैं। हिमाचल के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि यह कानून छोटे किसानों के हितों की रक्षा के लिए लागू किया गया था।

हिमाचल में गैर कृषि जमीन पर पाबंदियां

हिमाचल प्रदेश टीनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट, 1972 का सेक्शन 118 जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 और 35ए से बिल्कुल अलग है। यह सेक्शन गैर कृषि भूमि पर लागू होता है और हिमाचली और गैर हिमाचली में अंतर करता है। राज्य में कोई भी खरीद सकता है। लेकिन गैर कृषि भूमि के लिए हिमाचली और गैर हिमाचली के नियम अलग हैं। अगर कोई कारोबार या मकान के लिए जमीन खरीदता है तो उसे राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। इस सेक्शन में गैर किसान राज्य की अनुमति के बिना जमीन ट्रांसफर नहीं कर सकता है। कांग्रेस भी संविधान की अनुसूची में सूचीबद्ध स्टेट एक्ट के सेक्शन 118 का कांग्रेस भी बचाव कर रही है।

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TAGS: Art 371, Sikkim, amit shah
OUTLOOK 06 August, 2019
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