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10 October 2017

पटाखों का सबसे बड़ा हब कैसे बन गया शिवकाशी?

अय्या नादर की तस्वीर (विकीपीडिया), शिवकाशी की एक यूनिट में काम करती महिलाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर बैन लगा दिया है। बेचने वाले से लेकर इन्हें फोड़ने वाले तक, सब परेशान हैं। एक की जेब पर मार पड़ी है, एक की धार्मिक आस्था पर। लेकिन पटाखा व्यवसाय पर निश्चित ही असर पड़ेगा। भारत में पटाखा बनाने वाली कई जगहों से दिल्ली में पटाखे आते हैं लेकिन भारत में पटाखों का सबसे बड़ा हब तमिलनाडु का शिवकाशी है।

देश के पटाखा बाजार में इसका हिस्सा 50 से 55 फीसदी तक है। एक अनुमान के मुताबिक, शिवकाशी में 50 हजार टन का पटाखा उत्पादन होता है और इनका सालाना टर्नओवर 350 करोड़ के आस-पास है। पटाखों के अलावा शिवकाशी माचिस और प्रिंटिंग प्रेस की इंडस्ट्री के लिए भी जाना जाता है।

माचिस की फैक्ट्री से हुई शुरुआत

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शिवकाशी के पटाखा हब बनने की शुरूआत माचिस की फैक्ट्री से ही हुई थी। इसकी वजह ये है कि यहां का मौसम शुष्क है, जो माचिस बनाने के लिए मुफीद था। 1923 में, अय्या नादर और शनमुगा नादर ने इस दिशा में पहला कदम रखा था। दोनों काम की तलाश में कलकत्ता गए और एक माचिस की फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। इसके बाद अपने घर शिवकाशी लौट आये। वहां पर माचिस फैक्ट्री की नींव डाली।

1934 में जब माचिस पर एक्साइज ड्यूटी लगा दी गई तब, उन्होंने हल्के पटाखे बनाने शुरू किए। 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। 1944 तक पटाखे के आयात में बाधा पड़ गई। यहां से शिवकाशी के पटाखा उद्योग में उछाल आया।

एक्सप्लोसिव एक्ट में संशोधन 

1940 में एक्सप्लोसिव एक्ट में संशोधन किया गया और एक ख़ास तरह के पटाखों को बनाना वैध कर दिया गया। नादर ब्रदर्स ने इसका फायदा उठाया और 1940 में पटाखों की पहली अधिकृत, पहले से अधिक सुनियोजित और सुरक्षा मानकों के साथ फैक्ट्री डाली।

नादर ब्रदर्स ने पटाखों को दिवाली से जोड़ने की कोशिश शुरू की। माचिस फैक्ट्री की वजह से उन्हें पहले से ही प्लेटफॉर्म मिला हुआ था। दूसरी जगहों पर पटाखे कम थे इसलिए इनके पटाखों की मांग बढ़ी। इसके बाद शिवकाशी में पटाखों की फैक्ट्री तेजी से फैलीं। विश्व युद्ध खत्म होने तक यहां का व्यापार काफी फैल चुका था।

दूसरी यूनिट में बढ़ोत्तरी

नादर ब्रदर्स के अलावा दो और बड़ी फैक्ट्री 1942 में अस्तित्व में आईं। कालीश्वरी फायरवर्क्स और स्टैंडर्ड फायरवर्क्स। इन्होंने पूरे भारत में अपने पटाखे बेचने शुरू किए। शिवकाशी में धीरे-धीरे इतनी पटाखों की यूनिट हो गईं कि 1980 तक यहां 189 पटाखों की फैक्ट्रियां थीं। 2001 तक बढ़कर ये 450 हो गईं।

साइड इफेक्ट

लेकिन जैसा होता है, अति हुई तो इसके साइड इफेक्ट भी हुए। शिवकाशी की पटाखा फैक्ट्री की वजह से चाइल्ड लेबर खूब बढ़ गया। जातीय डिवीजन भी बढ़ा। इस पेशे से जुड़े काफी लोगों की मौत हो गई और कई लोग अपाहिज हो गए। एक और बड़ी समस्या सांस की बीमारियों की है। पटाखे बनाने के काम में गनपाउडर का इस्तेमाल होता है और ऐसे माहौल में काम करना सेहत के लिए काफी खतरनाक है इसलिए पटाखा फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों को आमतौर पर सांस संबंधी समस्याएं होती हैं। लेकिन अब स्थितियां काफी हद तक सुधर चुकी हैं।

शिवकाशी के पटाखा बनाने वालों ने अब चाइना में भी पटाखे बनाने शुरू कर दिए हैं लेकिन पिछले दस सालों में भारत के पटाखों में शिवकाशी का शेयर पहले से कम हुआ है।

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TAGS: diwali, supreme court firecrackers ban, firecrackers
OUTLOOK 10 October, 2017
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