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09 November 2019

यह फैसला न न्याय देता है न समानता : सुन्नी वक्फ बोर्ड

सत्तर साल साल बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन पर एक ट्रस्ट के जरिए मंदिर निर्माण की बात कही है। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का भी फैसला सुनाया है। इस फैसले पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा है, “हम फैसले से संतुष्ट नहीं हैं।" सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है। जफरयाब जिलानी का कहना है कि फैसले में बहुत अधिक विरोधाभास हैं और वे इसकी समीक्षा की मांग करेंगे। उनका कहना है कि यह फैसला न न्याय देता है न समानता। 

फैसले की समीक्षा हो: सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि “यह फैसला न समानता देता है न न्याय।” इसलिए आने वाले दिनों में हम रिव्यू प्ली दाखिल करेंगे। जिलानी का कहना है, “अयोध्या फैसले की हमारे लिए कोई अहमियत नहीं है। यह विरोधाभास से भरा है। हम इस फैसले से असंतुष्ट हैं और हम इसकी समीक्षा की मांग करेंगे।” सुन्नी वक्फ बोर्ड के ‌विचार से इतर रामलला की ओर से पक्षकार वरिष्ठ वकील सी.एस वैद्यनाथन ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह लोगों की जीत है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही संतुलित फैसला है। यह भारत के लोगों की जीत है। 

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दायर की जा सकती है रिव्यू पिटिशन

लेकिन अभी भी असंतुष्ट पक्ष के सामने फैसले के 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पिटिशन) दाखिल करने का एक विकल्प मौजूद है। किसी पक्ष की फैसले से असहमति हो तो क्यूरेटिव पिटिशन भी दाखिल की जा सकती है। इसे दाखिल करने के ‌लिए 30 दिन का ही वक्त मिलता है। यदि किसी पक्ष को रिव्यू पिटिशन के फैसले पर एतराज हो, तो उसके बाद क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जाती है। सुनवाई के तथ्यों के बजाय सिर्फ कानूनी पहलुओं पर ही विचार होता है। जबकि रिव्यू पिटिशन में सुप्रीम कोर्ट को फैसले की गलतियों के बारे में बताना होता है। रिव्यू पिटिशन में वकीलों की जिरह के बजाय फैसले के ‌रिकॉर्ड्स पर विचार होता है।

फैसले से हम आहत

सुप्रीम कोर्ट के बाहर मीडिया को संबोधित करते हुए एआईएमपीएलबी के सचिव जिलानी ने कहा, “निर्णय बस अभी सुनाया ही गया है। इसमें संविधान और धर्मनिरपेक्षता को लेकर काफी बातें कही गई हैं। लेकिन अनुच्छेद 142 आपको ऐसा नहीं करने देता। हम इस फैसले से बहुत आहत हैं।

जिलानी बोर्ड की कानूनी टीम के एक हिस्सा थे, जिसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में और बाद में शीर्ष अदालत में मुकदमा लड़ा। जिलानी का कहना है कि “हम इस बात से असंतुष्ट हैं कि आंतरिक प्रांगण जहां नमाज अदा की जाती थी, वह भी दूसरी पार्टियों को दे दिया गया। यही वजह है कि यह फैसला न समानता का है न न्याय का। शरिया कानून के तहत हमें मस्जिद से दूर नहीं किया जा सकता। हालांकि हम कोर्ट का फैसला मानेंगे। 12वीं शताब्दी से 1528 के बीच उस भूमि पर क्या हुआ, इसका कोई प्रमाण नहीं है। हिंदुओं का दावा है कि विक्रमादित्य युग से वहां मंदिर मौजूद था, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है।”

विवाद मस्जिद का न कि जमीन का

मुस्लिम समुदाय के लिए अलग जमीन देने के पर, जिलानी ने कहा कि “दशकों पुराना विवाद मस्जिद के बारे में था, न कि जमीन के बारे में। कोई भी मस्जिद की जमीन से अदला-बदली नहीं कर सकता। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि 1949 में वहां मूर्तियां रखना गलत था, लेकिन फिर भी निर्णय उनके पक्ष में गया। एआईएमपीएलबी के सदस्य कमाल फारूकी ने भी जिलानी की बात को दोहराया है। उनका भी कहना है कि यह विवाद कभी भी जमीन के बारे में नहीं था। फारूकी का कहना है कि यदि वे लोग चाहें तो हमसे 100 एकड़ जमीन ले सकते हैं। वहीं जिलानी का कहना है कि “यह मसला भविष्य में और परेशानी का सबब बनेगा।”

कानूनी रूप से जो संभव होगा करेंगे

असहमति के साथ उन्होंने देश में शांति बनाए रखने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि यह किसी की जीत या हार नहीं है। कानूनी रूप से जो भी संभव होगा हम करेंगे। हमारी बस इतनी ही गुजारिश है कि सभी लोग शांति बनाए रखें।

हालांकि एआईएमपीएलबी के सचिव ने यह स्वीकार किया कि, “फैसले के कुछ हिस्से देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम 30 दिनों के भीतर समीक्षा याचिका दायर कर सकते हैं, लेकिन फिलहाल इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। हमारी लीगल टीम फैसले का अध्ययन करने के बाद यह निर्णय लेगी। हमें फैसले से असहमत होने का अधिकार है लेकिन मैं यह कभी नहीं कहूंगा कि हम पर कोई दबाव था। गलती किसी से भी हो सकती है। शीर्ष अदालत ने कई मामलों में अपने ही फैसले की समीक्षा की है। यदि कार्य समिति चाहेगी, तो हम समीक्षा याचिका के साथ आगे बढ़ेंगे।”

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TAGS: Sunni Waqf Board, ayodhya verdict
OUTLOOK 09 November, 2019
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