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21 January 2015

कामयाबी की कुंजी

बीस साल की उम्र में सपने एक से होते हैं, गुजरी पीढ़ी से उलाहने एक से होते हैं। स्मार्ट फोन पर खेले जाने वाले खेल एक से होते हैं और व्हॉट्स एप के संदेशे एक से होते हैं। एक ही चुटकुला बुलंदशहर के लड़के को हंसाता है तो शायद वहीं चुटकुला कोलकाता की कोई लड़की अपनी सहेली को भेज देती है। नासिक का कोई युवा आईआईटी में पढऩे जाता है तो मंदसौर की कोई लड़की फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने अहमदाबाद चली आती है। पटना से पूना और जम्मू से जमशेदपुर तक युवाओं के लिए कहीं कोई सीमा नहीं है। बड़े शहर, मंझौले कस्बे, छोटे गांव अब नक्शों में हैं। रहन-सहन और बातचीत का अंदाज शहरी युवा और ग्रामीण युवा का फर्क मिट रहा है। इस फर्क को मिटाने के लिए सिर्फ फैशन ब्रांड्स, नए-नए गैजेट और नामी रेस्टोरेंट की पूरे भारत में खुली शृंखलाएं नहीं हैं। जहां बैठ कर किसी भी जगह वे पिज्जा या बर्गर खाते हैं, नूडल्स सूड़कते हैं और एलन सोली की शर्ट या लेवाइस की जींस पहन कर सोनी या सेमसंग का मोबाइल हाथ में उठाए घूमते हैं। एक छोटी सी भावना का नाम है आत्मविश्वास जो हर तबके के युवा में जागा है। सरकारी नौकरी से लेकर निजी फर्मों तक छोटे शहर के युवा दिखाई पड़ रहे हैं। बहुत हद तक इसका श्रेय तकनीक को भी जाता है। जिसने जानकारी का ऐसा द्वार खोल दिया है, जिसकी चाभी हर किसी के पास है। मीडिया और इंटरनेट से पहुंच आसान हुई है और इस आसानी ने बहुत से युवाओं का जीवन आसान कर दिया है।

देश की तरक्की के लिए यह अच्छा संकेत हैं कि हर तबके और क्षेत्र से युवा आगे आना चाहते हैं। किसी एक युवा के बारे में प्रकाशित-प्रसारित खबर दूसरे को प्रेरणा देती है। कई बार ऐसी ही सकारात्मक सूचनाएं उन माता-पिता को भी संदेश देती हैं जो नहीं चाहते कि उनके बच्चे बड़े शहरों की भीड़ में गुम होने जाएं। बड़े शहरों के मुकाबले छोटे या मंझले शहरों से आने वाले युवाओं का प्रतिशत बताता है कि यह आत्मविश्वासी भारत का सशक्त कदम है।

जम्प कट

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डर का मुझे पता नहीं

मुझे नहीं पता आत्मविश्वास किसे कहते हैं। बस मैं इतना जानता हूं कि कभी भी किसी बात को कहते हुए झिझकना नहीं चाहिए। कोई भी बात दृढ़ता के साथ रखी जाए तो यह अलग असर डालती है। जब तक गांव से बाहर नहीं गया था तब तक लगता था, दुनिया बस यही है। फिर मैंने जाना कि मेरे इस छोटे से गांव से बाहर एक ऐसी दुनिया है जिसकी रफ्तार बहुत तेज है। मेरे गांव में अभी भी हाइस्कूल नहीं है। पढऩे की तो छोडि़ए किसी जानकारी के लिए भी तहसील या जिले तक की परिक्रमा करना ही पड़ती है। ऐसा नहीं था कि खेती मेरे लिए एकमात्र विकल्प था। मैं भी चाहता था तो छोटी-मोटी निजी नौकरी कर सकता था। लेकिन जो भी कुछ मैं थोड़ा-बहुत पढ़ सकता था, अखबार या पत्रिकाएं उससे मैंने जाना कि युवा खेती करना नहीं चाहते। जबकि पंजाब में स्थिति बिलकुल अलग थी। तब मैंने अपने खेतों को हमेशा हरा रखने के बारे में सोचा और आज नतीजा यह है कि आसपास के किसान भी मुझसे खेती के बारे में पूछने आते हैं। वे लोग भी जो मुझसे उम्र में ज्यााद हैं और बरसों से खेती ही कर रहे हैं। मैं जिले के कलेक्टर से जाकर बात करता हूं और उनसे कहता हूं कि वह किसानों की बेहतरी के लिए काम करें। मैंने अपना एक दल बनाया है, जो समस्याएं संबंधित अधिकारियों से पहुंचाता है। इससे बिजली-पानी, सड़क जैसी समस्या का हल बहुत हद तक हमने निकाला है। मैं चाहता हूं कि मेरे गांव का हर बच्चा पढ़ा लिखा हो। सभी डॉक्टर-इंजीनियर नहीं बन सकते, लेकिन कम से कम वे अपने अधिकार के बारे में जागरूक हों। दुनिया में क्या चल रहा है इसे जान पाएं।

लगभग छह महीने पहले हमने गांव की लड़कियों को इकट्ठा किया और उनसे मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखवाया। मुख्यमंत्री जी ने लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल दी थी। जब सड़क ही नहीं तो साइकिल का क्या उपयोग। पत्र लिखने की यह कवायद रंग लाई और पहली बार हमारे यहां गांव से तहसील तक सड़क बन गई है। पहले गांव वालों को लग रहा था कि मुख्यमंत्री जी को पत्र कैसे लिखें, क्या सुनवाई होगी? लेकिन मैं आश्वस्त था। आने वाले दिनों में मेरी योजना एक वाचनालय खोलने की है। जहां अखबार और किताबें हो ताकि गांव के बच्चे जानकारी से महरूम न रहें। मैं चाहता हूं कि गांव के किसी बच्चे में जानकारी के अभाव में हीनता न आए। 

(युवा किसान रोहित काशिव गांव-पोस्ट सामरधा, तहसील-टिमरनी, जिला हरदा में रहते हैं। खेती के साथ पत्राचार माध्यम से एलएलबी की पढ़ाई की। पिछले वर्ष उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने मूंग की रेकॉर्ड तोड़ पैदावार की।) 

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TAGS: आत्मविश्वास, मुद्दे, गांव, शहर
OUTLOOK 21 January, 2015
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