जनता कतार में, पार्टियों को करोड़ों की छूट
यहां तक कि देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का आरोप है कि देश के राजनीतिक दल 2003 के बाद से ही हवाला कारोबार से जुड़ गए हैं। ऐसे में काले धन को खत्म करने के नाम पर 500 और 1000 रुपये के नोट खत्म करने से उनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हवाला के जरिये ये राजनीतिक दल अपने आप को बचा ले जाएंगे। हवाला कारोबारी मोटा कमीशन लेकर इन दलों का काला पैसा सफेद कर देंगे।
दरअसल राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर भारी टैक्स छूट मिलती है। इसके अलावा भी इन दलों को कई सहूलियतें दी जाती हैं। हाउस प्रापर्टी, कैपिटल गेन, चंदा या अन्य स्रोतों से होने वाली आय पर उन्हें टैक्स नहीं चुकाना पड़ता। इन दलों के पास 80 फीसदी पैसा कहां से आता है, किसी को नहीं पता। अकेले मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय, क्षेत्रीय व अन्य दल मिलाकर कुल 51 पार्टियां चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हैं। आयकर अधिनियम की धारा 13-ए में राजनीतिक दलों को टैक्स से छूट मिली हुई है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री को बजट से पहले एसौचेम द्वारा दिए गए एक ज्ञापन में कहा गया था कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले बेनामी चंदे पर भी कर लगाया जाए मगर मोदी सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी का कहना है की राजनीतिक दल जनता से तो ईमानदारी की उम्मीद करते है और चुनावी चंदे के नाम पर खुद काला पीला करते है। उनके अनुसार कई राजनीतिक दल मनी लॉन्ड्रिंग की फैक्ट्री बन गए है। यह चंदा लेते तो करोड़ों में है पर इसको ‘पेटी कैश डिपोजिट’ के नाम पर दिखाते है।
आयकर छूट के लिए राजनीतिक दलों को केवल भारतीय लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29(ए) के तहत रजिस्टर्ड होना जरूरी है। इस अधिनियम में अकेले मध्य प्रदेश के 51 राजनीतिक दल रजिस्टर्ड हैं। देशभर में इनकी संख्या 1737 है। चौंकाने वाले तथ्य हैं कि इनमें से अधिकांश दलों ने कोई चुनाव नहीं लड़ा, परंतु उनको वह सब सुविधाएं प्राप्त है जो राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों को मिली हुई हैं। चुनाव सुधारों पर काम करने वाली संस्था एडीआर के अनुसार 2004 से 2015 के बीच हुए 71 विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों कों 2100 करोड़ रुपये का नकद चंदा मिला। पिछले लोकसभा चुनाव में आयोग को 300 करोड़ रुपये बिना सोर्स का नकद मिला था।