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13 October 2017

एम्स के इस बहस में असल मुद्दा हो रहा दरकिनार

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केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे के बयान पर बहस छिड़ी हुई है। पिछले रविवार को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान चौबे ने कहा था कि बिहार के लोग दिल्ली स्थित एम्स में बेवजह भीड़ लगाते हैं। उन्होंने कहा था कि लोग छोटी बीमारियों के लिए भी एम्स जाते हैं जिसका इलाज बिहार में हो सकता है। इस बयान के बाद विपक्षियों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई।

मंत्री अश्विनी चौबे यहीं नहीं रूके उन्होंने दिल्ली एम्स को निर्देश दिया गया है कि पटना एम्स में जिन बीमारियों का इलाज हो सकता है, उससे संबंधित मरीजों को वहां भेज दिया जाए।

लेकिन एम्स के कई डाक्टरों को यह बात बिल्कुल रास नहीं आई। एक डॉ शाह आलम ने तो स्वास्थ्य राज्यमंत्री के नाम खुला पत्र लिख डाला। एनडीटीवी के मुताबिक शाह आलम ने लिखा, "डॉक्टर होने के नाते हम क्षेत्र, जाति, धर्म, पंथ, लिंग, सामाजिक स्तर और राष्ट्रीयता के आधार पर किसी का इलाज करने से इंकार नहीं कर सकते। ऐसा करना न सिर्फ नैतिक तौर पर गलत है, बल्कि गैरकानूनी भी है। कृपया एम्स या फिर देश के किसी भी डॉक्टर को किसी खास समुदाय का इलाज नहीं करने की सलाह न दें। और आपकी सलाह नहीं मानने वाले डॉक्टर नैतिक और कानूनी तौर पर सही हैं, क्योंकि अगर बिहार से आने वाले मरीज़ की बीमारी छोटी भी है, तो उनकी सोच मायने रखती है, क्योंकि यह मरीजों का अधिकार है कि वे खुद को कितना बीमार मानते हैं।"

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वहीं चौबे की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ सोमवार को मुजफ्फरपुर की एक अदालत में एक परिवाद पत्र दायर किया गया था। मुजफ्फरपुर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी द्वारा चौबे के खिलाफ मंगलवार मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी हरि प्रसाद की अदालत में परिवाद पत्र दायर किया था।

इस बयान पर बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद मिश्र ने कहा कि चौबे की उक्त टिप्पणी से बिहारवासी अपने को अपमानित महसूस कर रहे हैं। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने चौबे पर मानसिक संतुलन खो देने और अनाप शनाप बोलने का आरोप लगाया।

एक तरफ जहां मंत्री महोदय बिहार जैसे राज्यों से इलाज कराने एम्स आए लोगों ‘बेवजह भीड़’ मानते हैं। वहीं कुछ लोग इसे मान-अपमान जैसे मुद्दे से जोड़ रहे हैं। जबकि हमारे देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर इस दौरान बहस छिड़नी चाहिए, क्योंकि बिहार जैसे राज्यों से कोई शौकिया तौर पर राजधानी दिल्ली के एम्स में नहीं आता। यदि उसे अपने इलाके में उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होती तब वह यहां आने की जहमत नहीं उठाता। डॉ. शाह आलम के शब्दों में कहें तो, "उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ से आने वाले मरीज समस्या नहीं हैं। ऐसे हालात दरअसल देश में हेल्थकेयर की लचर व्यवस्था की देन हैं।"

 

 

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TAGS: real issue, behind, AIIMS, debate, Ashwani choubey
OUTLOOK 13 October, 2017
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