‘मान’-अपमान का तमाशा
संसद और सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गईं। इसी संसद पर 2001 में आतंकवादियों ने हमला कर दिया था और कुछ सुरक्षाकर्मियों ने जान देकर संसद भवन और सांसदों की रक्षा की थी। इसके बाद संसद भवन में सुरक्षा के कड़े प्रबंध हैं।
संसद के अपने सुरक्षाकर्मियों के अलावा परिसर के बाहर अर्द्धसैनिक बल, दिल्ली पुलिस एवं गुप्तचर एजेंसियों के कर्मचारी भी तैनात रहते हैं। लेकिन इस देश में दो सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादी षड्यंत्र के तहत प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ही नृशंस हत्या कर दी थी। इसलिए यदि सांसद ही संसद की व्यवस्था में सेंध लगा सारे नियम-कानून तोड़कर वीडियो बनाकर पाकिस्तान-चीन सहित दुनिया के देशों और भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों को संसद के हर कोने का रास्ता समझा दें, तो इसे साधारण ‘मान’-अपमान-अवमानना कैसे माना जा सकता है?
भगवंत मान पहले यही दावा करते रहे कि उन्हें अपने मतदाताओं को संसद की कार्य-व्यवस्था बताने का अधिकार है। वह यह भूल गए कि सांसदों की भी आचार संहिता है। उन्हें विशेषाधिकार मिले हुए हैं। लेकिन संसद परिसर में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति (उप राष्ट्रपति) सर्वोपरि हैं। यही नहीं राष्ट्रपति पूरी संसद के संरक्षक हैं। संसद की आचरण समिति है। फिर संसद की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी में सरकार की भी भूमिका है।
दो साल सांसद रह चुके भगवंत मान के इरादे बहुत ठीक होते, तो उन्हें लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, संसदीय कार्यमंत्री अथवा प्रतिपक्ष के प्रमुख नेताओं से सलाह लेनी चाहिए थी। वह अपने को पंजाब में मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते हैं। पिछले दिनों क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू के नाटकीय ढंग से भाजपा और संसद सदस्यता छोड़ने से मान की बेचैनी बढ़ गई थी। सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होकर मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन सकते हैं। लेकिन आपसी खींचतान और पंजाब सहित देश में अपना नाम चमकाने के लिए मान के तमाशे पर संसद के दोनों सदनों ने चिंता व्यक्त की। लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने मान को बुलाकर नाराजगी व्यक्त की एवं बताते हैं कि मान ने क्षमा भी मांगी है। लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता अथवा सुरक्षा एजेंसियां इस माफी को पर्याप्त नहीं मान सकती। अब संसद और सरकार ही इस अपराध का दंड तय करेगी। लेकिन क्या इस तमाशे के बाद आम आदमी पार्टी के कई नेताओं के तमाशे कम होने की उम्मीद की जा सकेगी?