सुप्रीम कोर्ट बचा रहा लोकतंत्र | आलोक मेहता
अरुणाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी द्वारा कांग्रेस के असंतुष्टों को कंधा देकर पदासीन मुख्यमंत्री को हटाने के लिए राज्यपाल का उपयोग किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित बताते हुए केंद्र सरकार को कड़ा संदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कदम पहली बार नहीं उठाया है। उत्तराखंड में पिछले महीनों के दौरान दलबदल के साथ कांग्रेस को सदन में बहुमत सिद्ध करने का अवसर दिए बिना राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिश को भी अदालत ने ही असंवैधानिक करार दिया। प्रदेशों में अस्थिरता होने पर पहले भी संविधान के अनुच्छेद 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लगते रहे हैं। लेकिन हाल के वर्षों में ऐसा लगता है कि भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के राजनीतिक अभियान के लिए जल्दबाजी में चुनी हुई सरकारों को हटाने के लिए हर संभव अनैतिक, भ्रष्ट और असंवैधानिक कदम बढ़ा रही है। यह माना जा सकता है कि लोकसभा में भारी पराजय के बाद कुछ राज्यों में कांग्रेस के असंतुष्टों को संभालने में केंद्रीय नेतृत्व विफल रहा है। वास्तव में पार्टी में संवादहीनता और भाजपा से प्रलोभन के कारण अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कुछ कांग्रेसी विद्रोही हुए। यदि भाजपा इस आंतरिक लड़ाई को अपने हाल पर छोड़ देती एवं विधानसभा में बहुमत खोने के बाद राष्ट्रपति शासन लगाती, तो किसी को आपत्ति नहीं हो सकती है। यही नहीं भाजपा ने अल्पमत वाले गुट को अपना समर्थन देकर कमजोर सरकार बनवा दी। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने साबित कर दिया है कि वह सत्ता के बजाय संविधान के प्रावधानों से प्रतिबद्ध है। इससे पहले कोयला खान घोटाला हो या 2जी स्पेक्ट्रम या अब सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है। पर्यावरण संरक्षण या नागरिक सुविधाओं का मुद्दा, सुप्रीम कोर्ट करोड़ों लोगों की न्याय की अपेक्षा पूरी कर रहा है। लोकतंत्र के इस सबसे मजबूत तंत्र को कमजोर करने की सत्ताधारियों की हर कोशिश विफल होनी चाहिए।