इंटरनेट प्राइवेसी: बैकफुट पर सरकार, विवादित ड्राफ्ट वापस
शायद सरकार ऑनलाइन चैट, वाट्स एप मैसेज आदि पर पूरी नजर रखना चाहती थी। इसके लिए यह विचित्र नियम तैयार किया गया कि ऑनलाइन मैसेज 90 दिनों तक सुरक्षित रखने होंगे और मांगे जाने पर पुलिस या जांच एजेंसियों को दिखाने भी पड़ेंगे। जबकि तीन महीने तक चैट को मोबाइल फोन में सुरक्षित रखना न सिर्फ अव्यवहारिक है बल्कि यह लोगों की निजता का भी घोर उल्लंघन है। ऑनलाइन मैसेज में लोगों की प्राइवेट चैट के अलावा बैंक खातों, पासवर्ड और ऑनलाइन पेमेंट की जानकारी भी होती है। नए नियम से इनकी सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।
यह नीति ऑनलाइन चैट के साथ-साथ ईमेल जैसे सभी संदेशों पर भी लागू हो सकती थी। दरअसल, इन्क्रिप्शन ऑनलाइन संदेशों को सुरक्षित रखने के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक है, जिसमें संदेशों को कूट-शब्दों में इस तरह लिखा जाता है कि कोई अन्य व्यक्ति इसे न पढ़ सके। लेकिन अपराध से जुड़े कई मामलों में जांच के लिए पुलिस या जांच एजेंसियों को इन्क्रिप्टेड संदेशों को पढ़ने की जरूरत पड़ जाती है। इसी का ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ऑनलाइन मैसेज की सुविधा मुहैया कराने वाली कंपनियों और इनके उपभोक्ताओं के लिए नेशनल इन्क्रिप्शन पॉलिसी लाने जा रही है। जिसके लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना तकनीक विभाग ने प्रस्तावित नीति का मसौदा जारी कर 16 अक्टूबर तक सुझाव मांगे थे। लेकिन नीति के आपत्तिजनक प्रावधानों के कड़े विरोध को देखते हुए सरकार ने ड्राफ्ट वापस लेने का फैसला किया है।
डिजिटल इमरजेंसी के संकेत !
प्रस्तावित इन्क्रिप्शन नीति के चलते नागरिकों की निजता को लेकर देश में बड़ी बहस छिड़ गई है। सरकार के इस कदम की चौतरफा आलोचना हुई और इसे डिजिटल इमरजेंसी तक करार दिया गया। वाट्स एप जैसी सेवाओं के भविष्य पर भी सवाल खड़े होने लगे थे। क्योंकि ड्राफ्ट के मुताबिक, इन्क्रिप्टेड संदेशों का इस्तेमाल करने वाली सेवाओं को भारत में पंजीकृत होना आवश्यक होगा जबकि वाट्स एप जैसे तमाम मैसेज एप्लीकेशन देश के बाहर से संचालित होते हैं। ऐसे में या तो वाट्स एप का इस्तेमाल करना गैर-कानूनी हो जाएगा वरना वाट्स एप जैसी सेवाओं को भारत में पंजीकृत होकर सरकारी नियमों का पालन करना होगा।
डिजिटल इंडिया में इंस्पेक्टर राज
दरअसल भारत सरकार इन्क्रिप्टेड यानी कूटबद्ध संदेशों और डेटा पर अपनी पहुंच मजबूत करना चाहता है।इसलिए सिर्फ देश में पंजीकृत मैसेज सेवाओं के इस्तेमाल की अनुमति देने जैसे सुझाव दिए जा रहे हैं। साइबर मामलों के विशेषज्ञ पवन दुग्गल का कहना है कि एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया की बात कर रही है और दूसरी तरफ इस प्रकार का इंस्पेक्टर राज लाने की तैयारी की जा रही है।
प्रस्तावित नीति का विवादित अंश
"All citizens (C), including personnel of Government/ Business (G/B) performing non-official/ personal functions, are required to store the plaintexts of the corresponding encrypted information for 90 days from the date of transaction and provide the verifiable Plain Text to Law and Enforcement Agencies as and when required as per the provision of the laws of the country."
सरकार का स्पष्टीकरण
सोशल एप्ल पर पाबंदियों के खिलाफ लोगों के गुस्से को देखते हुए आज सुबह ही इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिक विभाग को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा। लेकिन सवाल यह है कि आखिर सरकार नागरिकों की निजता में दखल देने के लिए इतनी आतुर क्यों है। हालांकि, बाद में आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इन्क्रिप्शन पॉलिसी का मसौदा सरकार की अंतिम राय नहीं है। इसके बावजूद ड्राफ्ट को विचार-विमर्श के बाद दोबारा जारी किया जाएगा। सरकार सोशल मीडिया की आजादी का पूरा समर्थन करती है।