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30 October 2017

महात्मा गांधी हत्या केस दोबारा शुरू करने के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे परपोते तुषार गांधी

File Photo

महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी 70 वर्ष पहले हुई महात्मा की हत्या के मामले को फिर से खोलने की मांग करने वाली याचिका का विरोध करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। इस दौरान न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एमएम शांतानागौदर की पीठ ने यह जानना चाहा कि आखिर तुषार क्यों इस याचिका का विरोध कर रहे हैं?

तुषार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि अगर अदालत इस मामले पर आगे बढ़ती है और नोटिस जारी करती है तो वह स्थिति के बारे में समझा सकेंगी। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पीठ ने कहा कि इस मामले में कई सारे किंतु-परंतु हैं और अदालत न्यायमित्र अमरेंद्र शरण की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहेगी। अमरेंद्र शरण ने रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगते हुए कहा था कि उन्हें राष्ट्रीय अभिलेखागार से दस्तावेज अभी नहीं मिले हैं।

जयसिंह ने कहा कि वह महात्मा गांधी की हत्या के 70 वर्ष पुराने मामले को फिर से खोले जाने का विरोध कर रही हैं और याचिकाकर्ता के याचिका दायर करने के अधिकार पर भी सवाल उठा रही हैं। याचिकाकर्ता मुंबई के रहने वाले पंकज फडनीस हैं। वह अभिनव भारत के न्यासी और शोधकर्ता हैं। इस मामले को पीठ ने चार सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सहयोग के लिए छह अक्टूबर को वरिष्ठ अधिवक्ता शरण को न्यायमित्र नियुक्त किया था। पीठ ने कई सवाल उठाए मसलन मामले में आगे की जांच के आदेश के लिए अब साक्ष्य किस तरह जुटाए जा सकेंगे।

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गौरतलब है कि मामले में दोषी करार दिए गए नाथूराम विनायक गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दे दी गई थी। महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में हिंदू राष्ट्रवाद के दक्षिणपंथी समर्थक गोडसे ने बेहद नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी।

याचिकाकर्ता पंकज फडनीस ने कई आधारों पर जांच को फिर से शुरू करने की मांग की थी, उन्होंने दावा किया था कि यह इतिहास का सबसे बड़ा कवर-अप है। उन्होंने तीन गोलियों वाली थ्योरी पर भी सवाल उठाया। इसी थ्योरी के आधार पर विभिन्न अदालतों ने आरोपी गोडसे और आप्टे को दोषी करार दिया था। उन्हें फांसी दे दी गई थी, जबकि विनायक दामोदर सावरकर को साक्ष्यों के अभाव में संदेह का लाभ दिया गया था।

फडनीस ने दावा किया कि दो दोषी व्यक्तियों के अलावा कोई तीसरा हमलावर भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसी और सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) की पूर्ववर्ती ऑफिस ऑफ स्ट्रेटेजिक सर्विसेस (ओएसएस) ने महात्मा गांधी को बचाने की कोशिश की थी या नहीं।

उन्होंने बंबई हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें छह जून 2016 को दो आधारों पर उनकी जनहित याचिका रद्द कर दी गई थी। पहला यह कि तथ्यों की जांच-पड़ताल एक सक्षम अदालत ने की है और जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट तक हुई है। दूसरा यह कि कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट जांच-पड़ताल पूरी करके वर्ष 1969 में सौंपी थी जबकि वर्तमान याचिका 46 वर्ष बाद दायर की गई।

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TAGS: Tushar Gandhi, SC, opposing, reopening, Mahatma gandhi, assassination case
OUTLOOK 30 October, 2017
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