‘नमामि गंगे’ पर भारी पड़ रहा है नदियों में सीधे डंप होता मलबा, वीडियो ने खोली पोल
गंगा की सफाई के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन यानी नमामि गंगे नाम का प्रोजेक्ट बनाया था। 2018 तक गंगा की सफाई का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन सूरत-ए-हाल कुछ और है। आज भी मैला, कचरा, मलबा गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। अवैध कचरे के निपटान की वजह से पहाड़ियों में कई प्राकृतिक जल स्रोत सूख गए हैं। मंदाकिनी हो या अलकनंदा, गंगा की धार पर गंदगी बहाने का काम बेरोक-टोक जारी है। जिस गंगा को निर्मल बनाने के लिए कर्णप्रिय बातें कही जाती है.. उसे डंपिंग जोन की तरह इस्तेमाल होने से सरकार रोक पाने में नाकाम दिख रही है। हद तो तब हो रही है जब केन्द्र सरकार की ओर से ऑल वेदर रोड परियोजना के निर्माण कार्य के दौरान नदियों और पहाड़ों में सीधे मलबा गिराए जाने की बात सामने आ रही है। इस प्रोजेक्ट को लेकर आशंकाएं और विवाद भी उभर आए हैं। इस पर पर्यावरणविदों से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक कई सवाल उठा रहे हैं।
तस्वीरों-वीडियो में गंगा की पीर...
केंद्र की विशाल ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत करीब 12 हजार करोड़ रुपये से सड़क निर्माण का काम जारी है। पिछले माह नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड में चल रही इस परियोजना के निर्माण कार्य के दौरान नदियों और पहाड़ों में सीधे मलबा गिराए जाने का वीडियो साक्ष्य देखा और केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्रालय से जवाब तलब किया। अब इस तरह के और भी साक्ष्य सामने आए हैं जिससे पता चलता है कि गंगा नदी में मलबा गिराने का काम बंद नहीं हुआ है। गंगा आह्वान से जुड़ीं पर्यावरणविद मल्लिका भनोट ने अपने ट्विटर अकाउंट पर वीडियो साझा किया है जिसमें चार धाम सड़क का मलबा किस तरह मंदाकिनी और अलकनंदा नदी में डंप किया जा रहा है इसे देखा जा सकता है।
Chardham road muck dumping straight into Mandakini river pic.twitter.com/Xm1DfZxzjO
— Mallika Bhanot (@MallikaBG) June 3, 2018
Chardham road dumping zone straight into Alaknanda. pic.twitter.com/aMyRlkwSXy
— Mallika Bhanot (@MallikaBG) June 3, 2018
Please look at the slopes of muck straight into the Ganga. All generated by chardham works. These are pics clicked on 25th and 26th may pic.twitter.com/YOuhahxKwh
— Mallika Bhanot (@MallikaBG) June 3, 2018
जंगल में आग और सड़क परियोजना
उत्तराखंड में लगभग 2,800 हेक्टेयर जंगलों में आग लगी। इस पर यह बहस भी गरम थी कि इसके पीछे सड़क परियोजना तो कई वजह नहीं है। पर्यावरणविदों का मानना है कि सड़क निर्माण के लिए पहाड़ियों को काटने के बाद उसे नदी के किनारों पर या हरे जंगलों में फेंक दिया गया है जिससे प्राकृतिक जल स्रोत, झरने वगैरह सूख गए। ऐसे में जंगल में आग लगने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। झरने न केवल पेयजल की समस्या को हल करने में भूमिका निभाते हैं बल्कि गर्मियों के दौरान जंगलों की आग को फैलने से रोकते भी हैं।
सड़क परियोजना पर सवाल
कई पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता चारधाम महामार्ग पर सवाल उठा रहे हैं। मल्लिका भनोट ने ट्वीट किया, “बड़ा सवाल यह है कि क्यों चार धाम महामार्ग निर्माण के बारे में सोचा गया- हमें नाजुक पहाड़ियों में तेजी से ज़ूम करने वाले यातायात की आवश्यकता क्यों है?" उन्होंने सवाल उठाया कि अनियोजित आधारभूत संरचना की वजह से अप्रत्याशित और गंभीर परिणाम (2013 का सबक) हो सकते हैं।
The larger question is why chardham mahamarg was even thought of- Why do we need fast paced zooming traffic in fragile hills? Any study on carrying capacity? Unplanned infrastructure=unpredictable & severe consequences (lesson of 2013) pic.twitter.com/9sHQDkRU1q
— Mallika Bhanot (@MallikaBG) June 3, 2018
मशहूर पर्यावरणविद मनोज मिश्रा ने ट्वीट कर केन्द्र सरकार पर कटाक्ष किया है, "2013? नहीं यह हमारी विरासत नहीं है। कमजोर हिमालय! तो क्या हुआ? चारधाम महामार्ग मेरा सपना है और मैं इसे पूरा करूंगा। कानून और स्थानीय लोग देवदार से झूल सकते हैं। बिल्कुल, इसे पहले चार लेन के लिए देवदार को गिराया गया।"
निखिल घानेकर ने ट्वीट किया, “पता रहे कि एनजीटी को ऐसे वीडियो दिखाए गए थे। पर्यावरण मंत्रालय, सड़क मंत्रालय को कोर्टरूम में ऐसे वीडियो दिखाए गए थे।” उन्होंने केन्द्र सरकार पर सवाल उठाते हुए लिखा कि केंद्र किस तरह अपने प्रमुख चारधाम राजमार्ग परियोजना को कृयान्वित कर रहा है।
Be informed that #NGT was shown such videos. Environment ministry, road ministry was shown such videos in court room. This is how Centre is executing its flagship #Chardham highway project. https://t.co/opSNW18lie
— Nikhil Ghanekar (@NGhanekar) June 3, 2018
आप प्रवक्ता अल्का लांबा ने ट्वीट किया है, "सबसे बड़ी निराश करने वाली बात यह है कि प्रशासन यह सब होते हुए मूक दर्शक बन कर देख ही नही रहा बल्कि होने भी दे रहा है... बढ़ती आबादी की जरूरतों को देखते हुए अगर सही समय पर कदम नही उठाये गए तो वह दिन दूर नही जब पानी को लेकर गृह युद्ध तक छिड़ जाये और लोग हिंसा पर उतर आयें।"
ऑल वेदर रोड चीन सीमा से जुड़े होने के कारण सीमांत इलाकों तक चौड़ी सड़कें, सामरिक और रक्षात्मक जरूरतों के लिहाज से सही है। यातायात की बेहतरी, आम लोगों या यात्रियों को परेशानी से बचाने के लिए भी इसकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन दूसरी ओर जिस बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे हैं, और पहाड़ों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है उसे पर्यावरण की सेहत से सीधा-सीधा खिलवाड़ के तौर पर भी देखा जा रहा है।