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15 January 2015

आखिर क्या करेगा नीति आयोग?

भारत सरकार ने योजना आयोग की जगह राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति) आयोग के गठन की घोषणा भले ही कर दी हो मगर हर ओर से यही सवाल उठ रहे हैं कि यह आयोग आखिर करेगा क्या? इसके अधिकारों और काम-काज के दायरे को अब तक परिभाषित नहीं किया गया है और फिलहाल इसे सिर्फ थिंक टैंक के रूप में लिया जा रहा है। यह सवाल भी उठ रहे हैं कि राज्यों के बीच संसाधन के बंटवारे और विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी का जो काम पूर्ववर्ती योजना आयोग करता था वह काम अब कौन करेगा? क्या संसाधनों के आवंटन का काम वित्त मंत्रालय को दिया जाएगा या वित्त आयोग यह काम करेगा। अगर वित्त आयोग यह काम करेगा तो क्या इसके लिए संविधान संशोधन किया जाएगा? सबसे बढक़र यह सवाल है कि अगर वित्त मंत्रालय को यह काम सौंपा जाएगा तो सहकारी संघवाद (कोऑपरेटिव फेडरलिज्म) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे का क्या होगा क्योंकि यह कदम तो वित्तीय शक्तियों को और केंद्रीकृत ही करेगा। सवाल कई हैं और जवाब अभी कहीं से आते नहीं दिख रहे।
दूसरी ओर इस नए आयोग के सदस्यों में आपसी विवाद की खबरें भी आने लगी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मशहूर अर्थशास्त्री और खुले बाजार के समर्थक अरविंद पनगढिय़ा को इसका पहला उपाध्यक्ष बनाया है जबकि अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख वीके सारस्वत आयोग के पूर्णकालिक सदस्य बनाए गए हैं। गठन के दो सप्ताह के अंदर ही देबरॉय ने उपाध्यक्ष पनगढिय़ा के खिलाफ कई ट्वीट कर डाले हैं। कहा जा रहा है कि आयोग और इसके सदस्यों के अधिकार परिभाषित नहीं होने के कारण ही ऐसे विवाद भी सिर उठा रहे हैं।

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TAGS: नीति आयोग, नरेंद्र मोदी, वित्‍त मंत्रालय, वित्‍त आयोग, संसाधन
OUTLOOK 15 January, 2015
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