क्या केजरी की शपथ में जाने का साहस करेंगे मोदी
चुनाव अभियान के दौरान अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर मोदी और भारतीय जनता पार्टी के तीखे निजी आरोपों की वजह से यह सवाल ज्यादा मौजूं हो गया है। मोदी ने केजरीवाल को नक्सली और अराजक कहते हुए उन्हें जंगल चले जाने की सलाह दी थी तो अन्य भाजपा नेताओं ने उन्हें चोर और बंदर तक कहा था।
केजरीवाल ने गणतंत्र दिवस समारोह का निमंत्रण ने मिलने को भाजपा सरकार की संकीर्णता बताया था लेकिन भाषा के इस स्तर तक आप के नेता नहीं उतरे थे। इन घटनाओं को देखते हुए मोदी के उत्तर को सबको इंतजार है।
केजरीवाल जानते हैं कि अपने चुनावी वादे पूरे करने के लिए उन्हें केंद्र की वित्तीय और कानूनी मदद की जरूरत पड़ेगी। इसलिए उन्होंने इस तरह मानो संघर्ष विराम का हाथ बढ़ाया है लेकिन राजनीतिक संदेश उदारता का दिया है। यह एक चतुर राजनीतिक कदम है।
अगर मोदी निमंत्रण स्वीकार करते हैं तो संकीर्णता के आरोप से तो बच जाएंगे लेकिन सफल कूटनीतिक पहल का श्रेय केजरी को जाएगा। अगर मोदी ठुकराते हैं तो छोटे दिल के और केजरी के मुकाबले उन्नीस नेता माने जाएंगे। यानि हर हाल में केजरी की बल्ले बल्ले। रणनीतिक चातुरी में केजरीवाल हर कदम पर मोदी को मात दे रहे हैं।