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09 May 2016

यमुना की किसे परवाह

संजय रावत

केंद्र सरकार दिल्ली से दूर बहती गंगा को लेकर बेचैन है और ‘नमामि गंगा’ की तोता रटंत लगाए हुए है, मगर अपने सिंहासन स्थल दिल्ली की यमुना की चीत्कर उसे सुनाई नहीं दे रही। पिछले दो हजार साल से दिल्ली को जीवन देने वाली यमुना यहीं आकर ही हत्या का शिकार हुई। गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी यमुना उत्तरकाशी के निकट बंदर पूंछ से प्रयाग तक 1376 किलोमीटर का सफर तय करती है। हिमालय की चोटियों से सहारनपुर के निकट मैदान में उतरती है। वजीराबाद बैराज पर उसका सारा पानी दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए निकाल लिया जाता है और दे दिया जाता है नजफगढ़ और अन्य बड़े नालों का मैल।

पर्यावरणविद जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘दिल्ली के बाद यमुना नदी यमुना नाला हो जाती है।’  हरियाणा से गुजरते हुए जगाधरी, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत और सोनीपत में भी उसकी जम कर बेकद्री होती है और ताजेवाला पर उसकी आधी झोली हरियाणा के खेतों का पेट भरने को खाली कर ली जाती है। हरियाणा को यमुना वापस करते समय दिल्ली जो अपशिष्ट फरीदाबाद, बल्लभगढ़ और पलवल के हवाले करती है, उसमें कुछ इजाफा करके ही वे शहर यमुना को उत्तर प्रदेश को सौंपते हैं। मथुरा तक पहुंचते-पहुंचते यमुना यमनोत्री से लाई एक बूंद भी नहीं रख पाती। जो थोड़ा बहुत जल उसके पास बचता है, वह हिंडन जैसी सहायक नदियों का होता है जो खुद औद्योगिक कचरा ढोने वाले नाले भर हैं। आगरा पहुंचने तक यमुना ‘जल स्रोत’ नहीं ‘जहर स्रोत’ हो जाती है।

इसकी पुष्टि सन 2001 में अमेरिका की संस्था ‘यमुना फाउंडेशन फॉर ब्लू वाटर’ के सुबिजय दत्त की एक रिपोर्ट से हुई थी। इस रिपोर्ट में आगरा के निकट यमुना में हाइड्रोकार्बन का दावा भी किया गया था। हालात आज भी वही हैं। यमुना के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम है। यही वजह है कि समय-समय पर यहां मछलियों और घड़ियालों की मौतों की खबरें आती रहती हैं। आगरा में यमुना जल के जहरीला होने की पुष्टि ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट’ भी कर चुका है। यमुना के काले पानी को देखकर कर सुबिजय दत्त ने यहां तक टिप्पणी की थी, ‘यह मानवता के प्रति अपराध है।’ यमुना जब चंबल पहुंचती है तब कहीं जाकर उसकी सहायक नदियां चंबल, सेंगर, छोटी सिंध, बेतवा और केन उसे इतना जल दान करती हैं कि वह प्रयाग जाकर गंगा से मिलन कर सके।

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सवाल उठना लाजमी है कि जब विभिन्न सरकारें पिछले पच्चीस साल में आठ अरब रुपया यमुना की सफाई पर खर्च कर चुकी हैं, पर यह अब तक साफ क्यों नहीं हुई? क्यों हम दिल्ली में ही 22.5 करोड़ गैलन अशोधित पानी उस नदी में प्रवाहित कर रहे हैं? राजेंद्र सिंह बताते हैं, ‘सारा पैसा सीवर ट्रीटमेंट प्लांट और नालों पर खर्च हो रहा है। मगर यह कोई नहीं देख रहा कि निकली गंदगी कहा बहाई जा रही है।’ वह बताते हैं कि दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने यमुना की सफाई के लिए चौदह सौ करोड़ रुपये की योजना बनाई थी। तब भी उन्होंने मुख्यमंत्री को इस समस्या के बाबत आगाह किया था। राजेंद्र सिंह का मानना है कि नरेंद्र मोदी की सरकार को भी पहले अपने बगल की यमुना की सुध लेनी चाहिए।

पर्यावरणविद और सूचनाधिकार कार्यकर्ता आकाश वशिष्ट सवाल उठाते हैं कि केंद्रीय वायु एवं जल प्रदूषण रोक अधिनियम के तहत सरकारों के पास इतने अधिकार हैं फिर भी दिल्ली जैसी जगह में यमुना को क्यों नहीं बचाया जा सका? उनका स्पष्ट मानना है कि दिल्ली की यमुना में पानी कम और प्रदूषण ज्यादा है। पर्यावरणविद एवं अरण्य संस्था से जुड़े संजय कश्यप बताते हैं कि पहले यमुना एक्शन प्लान के तहत सन 1993 से 2003 तक 680 करोड़ रुपये खर्च किए गए और उसके बाद 2004 में शुरू हुए दूसरे यमुना एक्शन प्लान में 624 करोड़ रुपये। जल बोर्ड ने 439 करोड़ और दिल्ली औद्योगिक निगम ने 147 करोड़ अलग से व्यय किए।

यहां प्रसिद्ध गांधीवादी और पर्यावरणविद अनुपम मिश्र का अनुभव बेशकीमती नजर आता है। वह समय-समय पर दोहराते रहे हैं कि वर्षा ऋतु में नदियां अपनी सफाई खुद कर लेती हैं और हमें बस इतना करना है कि दोबारा उन्हें गंदा न करें। दूसरी ओर यमुना को लेकर चहुं ओर चिंता तो नजर आती है मगर उसके परिणाम कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे। दिल्ली के पर्यटन और जल मंत्री कपिल मिश्रा केरल की तर्ज पर यमुना में नौका दौड़ और यमुना किनारे आरती की बात करते हैं, मगर यमुना के सौ क्यूबिक सेंटीमीटर पानी में 7500 केलिफोर्म बैक्टीरिया पर वह चुप हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी अनेक बार दावा कर चुके हैं कि गोमती, सरयू और वरुणा के साथ-साथ यमुना के पानी को भी साफ किया जाएगा। ऐसा वह कब शुरू करेंगे इसकी घोषणा अभी तक नहीं हुई है।

इस मामले में केंद्र सरकार की रीति नीति सर्वाधिक दुखदायी साबित हो रही है। श्री श्री रविशंकर की संस्था ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ ने यमुना के खादर में विश्व संस्कृति महोत्सव मनाया। इस कार्यक्रम से प्रकृति को कितना नुकसान उठाना पड़ा, उसका आकलन भी नेशनल ग्रीन ट्रिबुनल अभी तक नहीं कर पाया है। केंद्र की पहल पर ही यमुना के खादर में अक्षरधाम मंदिर के लिए 47 हजार वर्ग गज भूमि दे दी गई थी। यही नहीं, पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र हासिल किए बिना ही इस जगह पर मंदिर का निर्माण भी हो गया। इसके अतिरिक्त यमुना की गोद से निकाल कर लगभग पौने दो लाख वर्ग गज भूमि पर कॉमनवेल्थ विलेज, मेट्रो डिपो और समाधि स्थल जैसे निर्माण कर दिए गए। यमुना की झोली से तीन सौ एकड़ भूमि निकाल कर उस पर अवैध निर्माण अलग से लोगों ने कर रखे हैं। अनुपम मिश्र कहते हैं, ‘नदी की भूमि लुटाने में केंद्र सरकार सबसे आगे है।’ वह कहते हैं, ‘दिल्ली यमुना की है, यमुना दिल्ली की नहीं। यह फर्क हमें समझना होगा। इन सबसे बेखबर केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार भी यमुना को जैसे पूरी तरह भूली बैठी है।’

गंगा मोक्षदायिनी है और यही वजह है कि उसमें अस्थियां और मृतक की राख प्रवाहित की जाती हैं, मगर यमुना जीवन दायिनी है और इसीलिए इसके तटों पर इतिहास, संस्कृति, राजनीति और व्यापार पोषित होते आए हैं। अब यह भी विडंबना ही है कि जिसके तट पर महाभारत लिखा गया, वह यमुना अब महाभारत के पात्रों की तरह अपनों के हाथों ही छलनी हो रही है और पूरी तरह हालात के समक्ष बेबस और लाचार है।

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OUTLOOK 09 May, 2016
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