फिल्मकार उडविन से कौन डरता है
इस फिल्म पर संसद में जमकर हंगामा हुआ और सरकार ने इसका भारत में प्रसारण रोकने की बात कही। हालांकि इससे पहले कोर्ट इसके प्रसारण पर रोक लगा चुका था। फिल्म के बारे में नेताओं ने जो तर्क दिए उससे समझ में आता है कि क्यों हमारे देश में बलात्कार की सजा सख्त नहीं है और बलात्कारी कानून के आसान रास्तों से पाक-साफ बाहर निकल आते हैं। निर्भया कांड पर बनी इस डॉक्यूमेंट्री पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि ‘हम किसी भी संगठन को ऐसी घटनाओं का व्यापारिक लाभ नहीं लेने देंगे।’ सरकार इस प्रकार की तीखी प्रतिक्रिया तब नहीं करती है, जब हनी सिंह जैसे रैप गायक ‘मैं हूं बलात्कारी ’ जैसे गीत गाते हैं और हुजूम हनी सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता है।
हनी सिंह के गीत न केवल महिला विरोधी बल्कि नशों को फैशन के तौर पर भी परोसने वाले भी होते हैं। सही मायने में तो वह व्यापार है, जिसमें एक गायक सरेआम औरतों के शरीर पर भद्दी टिपण्णियां करता है और जनता उसपर झूमती है। असल में तो ये लोग व्यापारी हैं, जो अश्लीलता को बेच करोड़ों रुपये कमाते हैं।
दरअसल नेताओं की बर्दाश्त से बाहर हो रहा है कि फिल्म निर्माता लेसली उडविन ने भारतीय समाज का पुरुषवादी चेहरा दुनिया के सामने ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 जनवरी को अमेरिकी प्रधानमंत्री बराक ओबामा के आने पर जितना मर्जी देश की महिला ताकत का प्रदर्शन करें लेकिन वह भारत में करोड़ों की भीड़ में मुट्ठी भर औरतें भी नहीं हैं। सच तो यह है कि रात होते ही सड़कों पर महिलाओं के प्रति पुरुष मानसिकता बदल जाती है।
राज्यसभा में जदयू के केसी त्यागी ने पूछा कि जेल के भीतर एक जघन्य कांड के दोषी का इंटरव्यू करने और प्रकाशित करने की आखिर इजाजत कैसे दी गई। जया बच्चन और सपा के अन्य नेताओं ने तिहाड़ जेल के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। वेंकैया नायडू ने तो यहां तक कह दिया कि इससे देश की छवि को नुकसान पहुंचा है।
क्या जेलों में कैद अपराधियों के बयान नहीं आते हैं? जिन नेताओं पर हत्या या भ्रष्टाचार का मुकद्दमा चल रहा है वह इंटरव्यू नहीं देते हैं? जेल में वीआईपी कैदियों को विशेष सहुलतें नहीं मिलती हैं? ऐसे में तो जेल अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती है। जहां तक देश की छवि का सवाल है तो हमारे देश में ज्यादातर पुरुष महिलाओं के मामले में कैसी सोच रखते हैं, उसे दुनिया को वाकिफ करवाया ही जाना चाहिए।
डॉक्मेंयूट्री समाज का सच है। ऐसा सच जो हमें जानने का अधिकार है। न केवल लेसली उडविन द्वारा बनाई इस डॉक्यूमेंट्री का मामला है बल्कि इससे पहले भी समाज का सच दिखाती डॉक्यूमेंट्रीज पर विवाद होते रहे हैं। चाहे वह संजय काक की जश्न-ए-आजादी या राकेश शर्मा की गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री फाइनल सॉल्यूशन हो।
ब्रिटिश मीडिया कंपनी के अनुसार बीती रात दस बजे ब्रिटेन में इसका प्रसारण किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार को बीबीसी से इस डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण कहीं भी नहीं करने को कहा था। गृह मंत्रालय ब्रिटिश फिल्म निर्माता लेस्ली उडविन के खिलाफ भी अनुमति की शर्तों का कथित रूप से उल्लंघन करने के आधार पर कानूनी कार्रवाई करने की भी योजना बना रहा है। जिसमें जेलों के भीतर इस प्रकार की शूटिंग की अनुमति देने वाले प्रावधानों की समीक्षा की जाएगी।