हमलों से पहले जांच-कार्रवाई क्यों नहीं? आलोक मेहता
जाकिर नाइक ने मुंबई में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के नाम से एक संस्था वर्षों से बना रखी है। इसके आयोजनों में सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा होती रही है। 2012 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी उसके विशाल आयोजन में जाकर जाकिर नाइक को ‘शांति के प्रतिनिधि नेता’ बता चुके थे। निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह ने स्वयं या उनकी उपस्थिति में जाकर नाइक ने आतंकवाद के समर्थन में कोई भाषण नहीं दिया होगा। लेकिन कांग्रेस गठबंधन की सरकार ने ही जाकिर नाइक से जुड़े ‘पीस टी.वी.’ चैनल को प्रतिबंधित किया था, क्योंकि चैनल पर उत्तेजक भाषण प्रसारित हो रहे थे। प्रतिबंध से इस बात की तो पुष्टि हुई कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जाकिर नाइक के संबंध उन तत्वों से रहे हैं, जो हिंसा भड़काने में लगे हैं। इसलिए जाकिर नाइक और उससे जुड़े लोगों के अंदरुनी इरादों और संदिग्ध गतिविधियों पर तीन वर्ष पहले ही गंभीरता से जांच-पड़ताल और कठोर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? दुनिया भर में ‘राम राज्य’ के युग से रावण ‘साधु’ के वेश में ही छल प्रपंच करके युद्ध की नौबत लाते रहे हैं। जाकिर नाइक अकेला नहीं है। ऐसे अनेक व्यक्ति विभिन्न धर्मों, समुदायों के नाम पर संस्थाएं बनाकर संदिग्ध गतिविधियां एवं हिंसा भड़काने वाले प्रचार या हथियारों तक का इंतजाम करते रहते हैं। सरकारें तब सक्रिय होती हैं, जब हिंसक घटनाएं हो जाती हैं। ऐसी गतिविधियों के लिए लालफीताशाही के रूप में कागजी कार्रवाई बेहद गैर जिम्मेदाराना मानी जाएगी। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात या हरियाणा-पंजाब- सामान्य पुलिस एवं जांच एजेंसियों की रिपोर्ट फाइलों में दबी रह जाती हैं। राजनीतिक स्वार्थों के कारण भी कार्रवाई ढीली पड़ती है। पुराने और नए अनुभवों को ध्यान में रखकर सरकार को अपना ढर्रा बदलना होगा। यह पहला अवसर है, जबकि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद में एक आतंकवादी का सीधे किसी भारतीय से आतंकवाद के लिए ‘शिक्षित’ होने का गंभीर आरोप सामने आया है। देर से ही सही यह संपूर्ण सत्ता व्यवस्था और समाज के लिए सबक है।