कश्मीर में अलगाववादी नेताओं को इन वजहों से मिली थी सुरक्षा
कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हुए हमले में 40 जवानों की मौत के बाद अलगाववादी नेताओं पर सरकार सख्त है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मीरवाइज उमर फारूक, बिलाल लोन, यासीन मलिक समेत 23 अलगावादियों की सुरक्षा वापस ले ली है। वहीं 160 राजनीतिज्ञों को भी दी गई सुरक्षा हटा ली गई है। इन अलगाववादी नेताओं को दशकों से सुरक्षा दी जा रही थी।
पुलवामा हमले के बाद अलगावादियों को दी जा रही सुरक्षा के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गई थी। लिहाजा शुक्रवार को श्रीनगर में प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजनाथ सिंह ने कहा था कि जो पाकिस्तान और आईएसआई से फंड लेते हैं उन्हें मिली सरकारी सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी। राजनाथ सिंह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनका संबंध आतंकी संगठनों से है। जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह सचिव ने अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा की समीक्षा की। फिर यह कदम उठाया गया।
अब सवाल उठता है कि आखिर इन अलगाववादी नेताओं को सरकार की ओर से क्यों सुरक्षा प्रदान की गई थी। आखिर क्यों 100 गाड़ियां और 1000 जवान इनकी रक्षा में लगे थे। बीते एक दशक के दौरान विभिन्न अलगाववादियों की सुरक्षा पर सरकारी खजाने से लगभग 15 करोड़ रुपये खर्च करने के कारण क्या थे?
अलगाववादियों को क्यों दी गई थी सुरक्षा?
दरअसल, घाटी में कुछ ऐसी घटनाएं हुई थीं जिसमें अलगाववादी नेताओं को चरमपंथियों से खतरा था। उदाहरण के तौर पर मीरवाइज और बिलाल लोन का मामला ऐसा है जिसे देखते हुए उन्हें सुरक्षा देने का फैसला किया गया था। दोनों के पिताओं की कश्मीर में हत्या हुई थी। उसके बाद इन दोनों को सुरक्षा दी गई थी। वहीं प्रोफेसर अब्दुल गनी बट्ट, हाशिम कुरैशी पर भी हमला हुआ था, जिसके बाद इन्हें भी सुरक्षा मिली थी।
इन अलगाववादी नेताओं को इन घटनाओं के बाद दी गई थी सुरक्षा
मीरवाईज उमर फारुक
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाईज मौलवी उमर फारुक के अपने संगठन का नाम अवामी एक्शन कमेटी है। अवामी एक्शन कमेटी का गठन उनके पिता मीरवाईज मौलवी फारुक ने किया था। मौलवी फारुक की 21 मई, 1990 में आतंकियों ने हत्या की थी। पिता की मौत के बाद कश्मीर के मीरवाईज और अवामी एक्शन कमेटी के चेयरमैन बने।
उन्हें अपने पिता की हत्या के बाद से ही सुरक्षा प्रदान है। इस सुरक्षा को साल 2015 में केंद्र सरकार ने जेड प्लस में बढ़ाया था। इसके अंतर्गत उन्हें सीआरपीएफ व राज्य पुलिस के सुरक्षाकर्मी प्रदान किए गए। इसके अलावा उन्हें बुलेट प्रूफ वाहन भी दिया गया। लेकिन साल 2017 में जामिया मस्जिद में ईद से चंद दिन पहले एक डीएसपी को चरमपंथियों द्वारा मौत के घाट उतारे जाने के बाद उनकी सुरक्षा में कटौती की गई थी। मीरवाईज के साथ राज्य पुलिस के एक डीएसपी के नेतृत्व में सुरक्षा दस्ता तैनात रहता था। बाद में डीएसपी को हटाकर सुरक्षा की कमान एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को दी गई।
बिलाल गनी लोन
बिलाल गनी लोन पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन व पूर्व समाज कल्याण मंत्री सज्जाद गनी लोन के भाई हैं। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का गठन बिलाल गनी के पिता अब्दुल गनी लोन ने 1978 में किया था। अब्दुल गनी लोन की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की संगठनात्मक कमान सज्जाद ने संभाली और बिलाल गनी लोन को हुर्रियत में पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। लेकिन वर्ष 2002 के चुनावों के बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस दो धड़ों बिलाल व सज्जाद में बंट गई। बिलाल गनी को छह से आठ पुलिसकर्मियों की गार्द के अलावा एक सिक्योरिटी वाहन भी प्रदान किया गया था।
मीरवाईज और गनी बट बोले, हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी
मीरवाईज मौलवी उमर फारूक और प्रो अब्दुल गनी बट ने राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा वापस लिए जाने पर कहा कि हमने कभी सुरक्षा नहीं मांगी थी। अगर इसे हटाया जाता है तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। इस सुरक्षा को भारतीय एजेंसियां कश्मीर के नेताओं को बदनाम करने के लिए ही इस्तेमाल करती हैं। राज्य सरकार ने खुद ही हम पर खतरे का आकलन कर सुरक्षा दी थी। इसके जरिए हमारी गतिविधियों की निगरानी की जाती थी। अच्छा हो गया है, अब हम आजादी से चल फिर सकेंगे।