चरखा से विश्व विजय की उड़ान | आलोक मेहता
सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की, असली आर्थिक प्रगति सुदूर गांवों में खेती के साथ छोटे-छोटे उद्योग और बड़े पैमाने पर कुशल कारीगरों की मेहनत से हो सकेगी। दुनिया में चीन की आर्थिक शक्ति सेना के बल पर नहीं गांव-गांव तक अच्छे कारीगरों और विश्व बाजार पर कब्जा कर सकने वाली छोटी-बड़ी वस्तुओं के निर्यात से बढ़ी है। देर से ही सही सरकार की नई ग्रामोद्योग नीति अब तैयार हुई है, जिसके अंतर्गत लगभग 7 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य बना है। खादी एवं ग्रामोद्योग श्रेणी में लगभग 35 हजार यूनिट काम कर रही हैं। भारत जैसे विशाल देश में यह संख्या सीमित है। भारत के रेशम की अपनी खासियत है और रेशम वस्त्रों का निर्यात 100 करोड़ रुपये पहुंचाने में कोई दिक्कत नहीं आ सकती है। इसी तरह हस्तशिल्प के क्षेत्र में केवल 20 हजार लोग काम कर रहे हैं, जबकि इससे पांच गुना अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है और दुनिया में भारतीय हस्तशिल्प की मांग बढ़ाई जा सकती है। सचाई यह है कि पिछले 25 वर्षों के दौरान आर्थिक उदारीकरण के नाम पर बड़ी कंपनियों, उद्योग-व्यापार में अधिकतम देशी-विदेशी पूंजी पर जोर दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र के उद्योगों की बात दूर रही शहरी क्षेत्रों की लघु उद्योग इकाइयां बड़ी संख्या में बंद होती गईं। गुजरात की प्रसिद्ध टेक्स्टाइल्स मिल भी बंद हो गईं। आई.टी. में प्रगति हुई, लेकिन गांवों के हथकरघे ठप पड़ते गए। सरकार ने अब एफ.डी.आई. को विभिन्न क्षेत्रों में 100 प्रतिशत अनुमति दे दी है। इससे देशी-विदेशी बड़ी कंपनियां खड़ी हो सकेंगी और सामान बनाकर निर्यात कर लेंगी। लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है, ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी-छोटी इकाई लगाकर उत्पादन हो और उसकी बिक्री के लिए आवश्यक सुविधाएं जुटाई जाएं। आर्थिक शक्ति के रूप में विश्व विजय हथियारों के बजाय चरखे जैसे संसाधनों के उपयोग से हो सकेगी। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘सेल इन इंडिया’ के लिए हर वर्ग की आमदनी की क्षमता बढ़ानी होगी।