इंटरव्यू। पुलिस के गिरते मनोबल को बढ़ाना जरूरी था: विकास दुबे के एनकाउंटर पर बोले यूपी के पूर्व डीजीपी
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), अरविंद कुमार जैन, जो खुद 2006 में चित्रकूट में कुख्यात डकैत शिवकुमार कुर्मी उर्फ ददुआ का एनकाउंटर कर चुके हैं, ने यूपी पुलिस के इस दावे का समर्थन किया कि गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर वास्तविक था। आउटलुक के जीवन प्रकाश शर्मा के साथ एक साक्षात्कार में, 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी का कहना है कि विकास दुबे की मौत तब हुई जब उसने भागने की कोशिश की और पुलिस और जनता का मनोबल बढ़ाना जरूरी था।
साक्षात्कार के प्रमुख अंशः
क्या आपको लगता है कि विकास दुबे के एनकाउंटर के फर्जी होने के आरोपों को देखने के लिए एक न्यायिक जांच की आवश्यकता है?
मजिस्ट्रियल जांच का आदेश पहले ही दिया जा चुका है और अगर न्यायिक जांच की जरूरत है, तो यह भी आदेश दिया जा सकता है।
लेकिन जब यूपी पुलिस और राज्य सरकार इतने विश्वास में हैं कि एनकाउंटर वास्तविक था, तो किसी भी जांच से क्या मतलब हल होगा?
नहीं, एक मजिस्ट्रियल जांच अनिवार्य है। जब भी मौत पुलिस हिरासत में होती है, तो एक मजिस्ट्रेट मौत के कारणों की आधिकारिक जांच करता है। डॉक्टरों की एक टीम पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करेगी। इसकी वीडियोग्राफी होती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के दिशा-निर्देश हैं, जिनका पालन किया जाना आवश्यक है। सरकार को इन सभी दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। इसके अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।
क्या आप 100 फीसदी आश्वस्त हैं कि यह एक वास्तविक एनकाउंटर था?
अगर मैं 100 फीसदी आश्वस्त हूं तो कोई कैसे कह सकता है? लेकिन हां, मैंने इस पर ध्यान दिया है, मैंने लोगों से बात की है और ऐसा लगता है कि एक दुर्घटना हुई, जिसके बाद एनकाउंट हुआ था।
आपको लगता है कि एनकाउंटर की वास्तविकता पर उंगलियां उठाई जा रही हैं?
मुझे लगता है कि एक व्यक्ति को पहले भी लगभग इसी तरह से गोली मारी गई थी। इसीलिए इस एनकाउंटर पर उंगलियां उठाई जा रही हैं। आपको एक बात का एहसास होना चाहिए:आठ पुलिसवाले विकास दुबे द्वारा मारे गए थे। वह एक खूंखार गैंगस्टर और आतंकवादी था। आप उसकी मानसिकता जानते हैं। कुछ भी संभव था। वह हथियार भी छीन सकता था। वह पुलिसकर्मियों पर गोलीबारी कर सकता था। वह भाग सकता था। यह पुलिस का कर्तव्य था कि अगर वे उसे उज्जैन की अदालत से पुलिस रिमांड पर लेते, तो उसे कानपुर की एक अदालत में पेश किया जाना चाहिए था। उज्जैन कोर्ट ने उसकी हिरासत यूपी पुलिस को सौंप दी थी। पुलिस यह नहीं कह सकती थी कि वह भाग गया।
तो फर्जी मुठभेड़ में विकास दुबे के मारे जाने की व्यापक अटकलों का क्या?
कुछ लोग हमेशा सवाल उठाते हैं जब उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर होता है। मैं उस समय महानिरीक्षक (एसटीएफ) था जब हमने ददुआ को चित्रकूट में मार दिया था। लोगों ने सवाल उठाया कि वह क्यों मारा गया। क्या समर्पण की कोई संभावना थी? हमने उसे क्यों नहीं पकड़ा? हमरी जिंदगी फालतू है क्या? (क्या हमारा जीवन बेकार है?)। एक और कुख्यात डकैत थोकिया ने हमारे छह कमांडो को मार दिया था। हमने उसे भी मार गिराया। लोग यूपी में एनकाउंटर पर सवाल उठाते रहते हैं। मैं 37 साल से सेवा में था और मैं 5 साल पहले सेवानिवृत्त हुआ था। यदि कोई एनकाउंटर नहीं होता है, तो हम पर उंगलियां उठाई जाती हैं। यदि कोई गिरफ्तारी नहीं होती है, तो हम पर उंगलियां उठाई जाती हैं। अगर कोई अपराधी आत्मसमर्पण करता है, तो लोग यह भी पूछते हैं कि उसने आत्मसमर्पण क्यों किया और वह गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ।
लेकिन कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर भविष्यवाणी की थी कि विकास दुबे को मार दिया जाएगा।
लोग चीजों पर सुझाव देते रहते हैं। वे कल्पना करते रहते हैं। यह यूपी पुलिस का ट्रैक रिकॉर्ड है कि यह अपराधियों को नहीं छोड़ती है।
ऐसी खबरें भी हैं कि जिस वाहन में विकास दुबे को एमपी से लाया जा रहा था, वह हादसे का शिकार नहीं हुआ था। क्या आपने उन पहलुओं पर भी गौर किया?
नहीं, मैं टेलीविजन पर साक्षात्कार और चर्चाओं में बहुत व्यस्त था। मैं वह सब गहराई से नहीं जान सका। लेकिन मैंने सुना है कि कार बदली गई थी, कपड़े बदले गए थे आदि बहुत सारी चीजें हैं। अब चूंकि पूछताछ चल रही है, तो सब कुछ सामने आ जाएगा।
ऐसे अपराधियों के बढ़ने में आपको राजनेताओं की भूमिका कहां दिखाई देती है?
राजनीति बहुत गंदी है। ऐसे अपराधियों को शरण देने के लिए सभी पार्टियां जिम्मेदार हैं।
आप इन अपराधियों की मदद करने वाले यूपी पुलिस के भीतर पनपने वाले मुखबिरों की रिपोर्ट पर क्या प्रतिक्रिया देंगे?
पुलिस विभाग में भी मुखबिर रहे हैं, जैसा कि कानपुर में घात लगाकर पुलिस पर हमला करने वाले मामले में हुआ मैंने किसी और पुलिस फोर्स में इतने ज्यादा मुखबिरों के बारे में नहीं सुना। एसओ और कई सिपाही शामिल थे। एक सर्कल ऑफिसर (सीओ) ने विकास को जेल में बंद करने की कोशिश की, वह उसे पकड़ने जा रहा था लेकिन एसओ ने माफिया को अलर्ट कर दिया। भागने के बजाय उसने छतों पर पोजीशन लेकर अपने साथियों के साथ पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। मैंने ऐसी किसी घटना के बारे में नहीं सुना था। ये पुलिस के मनोबल को गिराने वाला था। देखिए, कई बार लोगों का मनोबल भी टूटता है। उन्हें भी बुरा लगता है, अगर कोई अपराधी आठ पुलिसकर्मियों को मार दे, तो वह उनके साथ भी कुछ भी कर सकता है। पुलिस ने जो किया, मैं उससे पूरी तरह सहमत हूं। पुलिस और लोगों के गिर रहे मनोबल को बढ़ाना जरूरी था। यूपी के गैंगस्टर और माफिया को एक सबक कि अगर तुम पुलिस पर हाथ उठाने की कोशिश करोगे, बुरा व्यवहार करोगे, पुलिसवालों को मारने का साहस करोगे तो तुम भी भुगतोगे।